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________________ जन्म और कर्म का गठबन्धन ११३ पाप का फल भोगते समय भी स्वयं (उपादान) को जिम्मेवार मान । पाप के फल से भागने वाले मानव से कर्मवाद कहता है-तू जिस विषफल से भागना चाहता है, उसके बीज तो एक दिन तेरी ही आत्मा ने बोए थे, फिर दूसरे पर रोष और दोष क्यों ? .. आस्रवों के माध्यम से बन्ध और उसके कारण ___ अगर आस्रवों को रोका नहीं जाता है, तो वे इन (मिथ्यात्वादि) पाँच द्वारों से आते हैं और आत्मा इन्हें ग्रहण कर लेता है । यही बात अर्हतर्षि महाकाश्यप कहते हैं मिच्छत्तं अनियत्ती य, पमाओ यावि गहा। कसाया चेव जोगा य, कम्मादाणस्स कारणं ॥५॥ मिथ्यात्व, अनिवृत्ति, अनेकविध प्रमाद, कषाय और योग, ये पांच कर्म ग्रहण करने के कारण हैं। ये पाँच कर्मबन्ध (ग्रहण) करने के माध्यम हैं। तत्त्वार्थसूत्र (अ.८ सू.१) में भी इसी का समर्थन किया गया हैमिथ्यादर्शनाविरति-प्रमाद-कषाय-योगा बन्धहेतवः । -आत्मा से कर्म का बन्ध होने में ये पांच मुख्य हेतु हैं। .. १. मिथ्यात्व का लक्षण है-व्यवहार दृष्टि से देव, गुरु और धर्म पर या तत्त्वभूत पदार्थों पर श्रद्धा या विपरीत श्रद्धा करना, अथवा हठाग्रहपूर्वक पदार्थ को एकान्तरूप से मानना भी मिथ्यात्व है। निश्चय दृष्टि से-आत्मा की शुद्ध स्वभाव दशा से हटकर विभाव दशा में आनन्द मानना मिथ्यात्व है। २. अनिवृत्ति का लक्षण है-अविरति अथवा अव्रत । हिंसा, असत्य आदि पापों में प्रवृत्त होती हुई आत्मा को न रोकना व्यावहारिक दृष्टि से अविरति है। ३. प्रमाद का लक्षण है-मद्य (मद), विषय, कषाय आदि से प्रेरित होकर अपनी स्वभाव दशा को भूल जाना और व्रतों में अतिचार(दोष)लगाना। ४. कषाय का लक्षण है-जिसके द्वारा जन्म-मरणरूपी भव-परम्परा की वृद्धि हो । जैसे क्रोधादि विकार-क्रोध, मान, माया और लोभ । ५. योग-मन, वचन, काय की चंचलता को योग कहा जाता है । बन्धुओ! ये पांच आस्रव हो, जब रोके नहीं जाते, तब वे आत्मा के साथ दूध और पानी की तरह एकीभूत होकर बंध जाते हैं । मुमुक्षु साधक को चाहिए कि वह आत्मा को अनन्त शक्तिशाली मानकर बंधे हुए कर्मों को तोड़े और आत्मा से इन्हें पृथक करे । तभी वह जन्म और कर्म के दुःखदायी गठबन्धन से मुक्त हो सकता है।
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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