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________________ ११ जन्म और कर्म का गठबन्धन धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! क्या आप बता सकते हैं कि इस संसार में प्राणी बार-बार जन्म क्यों लेते हैं ? एक मनुष्य यहाँ से मर कर कभी मनुष्य बनता है, कभी पशु-पक्षी, कभी नारक बनता है तो कभी देव । इस प्रकार नाना रूपों में प्राणी जन्म लेता है, उसका क्या कारण है ? क्या इस जन्म और मरण की शृंखला का कभी अन्त भी हो सकता है ? अथवा जन्म - परम्परा को शिथिल किया जा सकता है ? आपके मन में इसका समाधान जानने की उत्सुकता जाग रही होगी ? तो लीजिए इस पहेली का समाधान अर्हतर्षि महाकाश्यप नौवें अध्ययन में करते हैं। उन्हीं के शब्दों में देखिए 'जाव जाव जम्मं, ताव ताव कम्मं कम्मुणा भो पया सिया । समियं उवनिच्चिज्जइ अवचिज्जइ य ।। " - जब तक जन्म है, तब तक कर्म है । -कर्म से ही प्रजा उत्पन्न होती है । - सम्यक्चारित्र के अनुसरण से कर्मों का अपचय ( शैथिल्य) होता है, और वे सम्पूर्ण रूप से क्षय भी हो सकते हैं। इस प्रकार महाकाश्यय अर्हतषि कहा। आशय यह है कि जहाँ जन्म हुआ, वहाँ कर्म अवश्य होंगे। शरीर छोड़ते समय अमर कर्म शेष होंगे तो फिर जन्म भी अवश्य लेना पड़ेगा । इस प्रकार जन्म और कर्म का चक्र तब तक चलता रहेगा, जब तक कर्मों का सर्वथा क्षय नहीं हो जाएगा। कर्मों का सर्वथा क्षय होने पर जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाएगा, फिर मोक्ष में जीव चला जाएगा, सिद्ध-बुद्धमुक्त हो जाएगा । अतर्षि महाकाश्यप ने अपने उद्गार में साथ-साथ यह भी सूचित
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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