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दुःख-मुक्ति के आध्यात्मिक उपाय ६५
दुःख से मुक्त होने के लिए क्या करे ? दुःख आने पर उसे भोगना तो पड़ता ही है, चाहे व्यक्ति हँसते-हँसते भोगे या रोते-रोते भोगे । जब कोई साधक अपने पर आये हुए संकट, कष्ट या दुःख को रोते-रोते, दीन-हीन मनोवृत्ति के साथ भोगता है, तो उससे दुःख कम नहीं होता, बल्कि अशुभ कर्मबन्धन करके वह व्यक्ति भविष्य में अनेक दुःखों के बीज बो देता है । अत: कुर्मापुत्र ऋषि का यह परामर्श है कि किसी भी प्रकार के दुःख से आक्रान्त होने पर साधक दीन-हीनवृत्ति से उस दुःख में उलझे नहीं, बल्कि तेजस्विता - अदीनता के साथ उस दुःख का सामना करे, उसे पूर्ण समभाव के साथ, पूर्वकर्मकृत दुःख मानकर सहन करे । इससे कर्मनिर्जरा भी होगी, व्यक्ति सदा के लिए दुःख का अन्त भी कर सकेगा ।
महासती सीता, अंजना, दमयंती आदि पर दुःखों के पहाड़ टूट पड़े थे, वे सब ओर से तिरष्कृत, निरुपाय, संकटग्रस्त और संतप्त हो चुकी थीं, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, उन दुखों के समय किसी भी निमित्त नहीं कोसा, स्वकृत कर्मों को ही दुखों का कारण माना। अतः न ही दीनता दिखाई, न ही अधीरता बताई, किन्तु दुःखों को समभाव से सहकर कर्म - निर्जरा की, आत्मशुद्धि की ।
अतः दुखमुक्ति के जो पांच उपाय अर्हतर्षि ने कुर्मापुत्र बताएँ हैं, उन पर चलकर क्या साधु, क्या गृहस्थ, क्या संघ और क्या राष्ट्र, सभी स्थायी उपायों पर मुस्तैदी
।
और अक्षय सुख को प्राप्त कर सकते हैं के साथ कदम बढ़ाएँ और अक्षय सुख को
आप भी इन प्राप्त करें ।