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________________ दुःख-मुक्ति के आध्यात्मिक उपाय ८६ आप में से अधिकांश लोगों से पूछा जाए कि आप क्या चाहते हैं-- बाह्य सुख या आन्तरिक शान्ति ? तब आप यदि दोनों मांगेंगे या चाहेंगे तो मिल नहीं सकेंगी; क्योंकि इस संसार की ऐसी व्यवस्था है, काल का भी ऐसा ही प्रभाव है। दोनों में कोई एक पसंद करो। अगर तुम बाह्य सुख मांगोगे तो वह भी मिल सकता है, बशर्ते कि तुम शुद्ध धर्म का आचरण करो । धर्म बाह्य सुख भी प्रदान कर सकता है। परन्तु याद रखो, ये बाह्य सुख तुम्हारे पास टिकेंगे नहीं। बाह्य वैषयिक सुख के साथ दुःख का आगमन निश्चित है । सुखों के उपभोग की आदत पड़ गई तो जब ये सुख तुम्हारे पास से चले जायेंगे, तब तुम्हारी मनःस्थिति कैसी होगी? जरा विचार तो करो। ___ अमेरिका के धनकुबेर जॉन० डी० रॉकफेलर ने जिन्दगी के अधिकांश वर्ष धन कमाने में ही बिताये थे । उसे धन एकत्र करने की ही चिन्ता में ब्लडप्रेशर हो गया। उसका स्वास्थ्य चिन्ताजनक हो गया। डाक्टरों ने इलाज करने में कोई कसर न रखी। जिस धन को उसने सुखदायक माना थो, वह दु:खदायक बन गया। आखिरकार एक डाक्टर ने उसे राय दी कदाचित् तुम स्वस्थ हो जाओ। तो भी तुम्हें सुख से जीना हो तो यह हाय तोबा छोड़ दो। पैसा मिला है तो स्वयं आनन्द से जीओ और उदार हृदय से दीन-दुखियों के दुःख दूर करो। रॉकफेलर के गले यह बात उतर गई । वह सम्पत्ति से प्राप्त होने वाले सुख की स्वयं परवाह न करके दीनदुःखियों की सहायता करने लगा। इसमें उसे आनन्द मिला। रॉकफेलर का स्वास्थ्य सुधरता गया। उसने अपनी ६३ वर्ष की जिन्दगी सुख से बिताई। बन्धुओ ! सुख का मूल मंत्र यही है कि स्वयं सुखों का त्याग करके दूसरों को सुख दो। कहावत है - 'सुख दियां सुख होत है, दुःख दियां दुःख होय ।' जो अपने सुख की परवाह न करके दूसरे के लिए दुःख सहता है, उन्हें सुखी बनाता है, अथवा यों कहें कि सुखी बनाने में निमित्त बनता है, तो उसे भी आत्मिक सुख मिलता है। अतः सुख का अथवा सुख की लालसा का त्याग करना ही सुख का मूल मंत्र है। - यदि तुम आन्तरिक सुख-शान्ति चाहते हो तो तुम अभी से सुख के त्याग के अभ्यासकाल के दौरान कष्ट सहन करने की आदत भी डालो।
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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