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________________ दुःख-मुक्ति के आध्यात्मिक उपाय ८५ तम्हा अदीणमणसो दुक्खी सव्वदुक्खं तितिक्खेज्जा । सेत्ति कुम्मापुत्तेण अरहता इसिणा बुइयं ॥२॥ - अतः ( कल्पना के दुःख से) दुःखी मानव अदीनमना होकर समस्त दुःखों को (समभावपूर्वक ) सहन करे । यही ( अक्षय सुख का राजमार्ग) अर्हत्-ऋषि कुर्मापुत्र ने बताया है । प्रस्तुत दोनों गाथाओं में अर्हतषि कुर्मापुत्र ने अक्षय सुख-शान्ति के पाँच आध्यात्मिक उपाय बताये हैं मानो । (१) काल्पनिक सुख या दुःख, दुःखावह होने से सभी को दुःख रूप (२) पदार्थों को पाने या रखने की अभीप्सा भी दुःखरूप मानो । (३) तथाकथित दुःखी की तरह दुष्करचर्या को अपनाओ । ( ४ ) तपश्चरण से दुःख का नाश करो । और (५) अदीनमना होकर समस्त दुःखों को सहन करो । आइए, हम आज प्रत्येक सूत्र पर चिन्तन करें । सुख और दुःख मन की कल्पना है जिनको आज मनुष्य सुख या दुःख मानता है । अपने माने हुए इष्टसंयोग तथा अनिष्टवियोग में सुख की तथा अनिष्टसंयोग और इष्टवियोग में दुःख की कल्पना करता है, वे केवल मनुष्य की कल्पना के ही सर्जन है न ? मनुष्य के अप्रशिक्षित ( untrained ) मन ने ही तो इस प्रकार के और दुःख की कल्पना की है ! सुख जो शाश्वत सुख, आत्मिक सुख पाना चाहता है, उसे इस प्रकार के सुख और दुःख की कल्पना ही नहीं करनी चाहिए। क्योंकि संसार का कोई भी सजीव या निर्जीव पदार्थ, परिस्थिति, क्षेत्र, काल या संयोग अपने आप में किसी को सुख या दुःख नहीं देता । परन्तु मनुष्य अमुक पदार्थ आदि में सुख की कल्पना करके फूल उठता है, और अमुक पदार्थ आदि में दुख की कल्पना करके तड़प उठता है । परन्तु अर्हतर्षि कहते हैं कि अगर मनुष्य किसी भी पदार्थ आदि में सुख अथवा दुःख की कल्पना ही न करे तो उसे न तो तथाकथित सुखद संयोग के वियोग होने पर अथवा तथाकथित दुःखद संयोग के आने पर दुःखी होना पड़े और न ही आर्त्तध्यान करना पड़े । एक सत्यभक्त कवि ने कविता की भाषा में इसी तत्त्वज्ञान का प्रतिपादन किया है—
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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