SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की प्रतिस्पर्धा में अकुलाते अपने पुत्रों को सर्वप्रथम 'सम्बोधि" (ज्ञानपूर्ण समाधि) का मार्ग बताया, जिसे आज की भाषा में 'योग मार्ग' कह सकते हैं। श्रीमद्भागवत में प्रथम योगीश्वर के रूप में भगवान ऋषभदेव का स्मरण किया गया है। वहाँ बताया है-भगवान् ऋषभदेव स्वयं नाना प्रकार की योगचर्याओं का आचरण करते थे। महाभारतकार ने योगविद्या के प्रारम्भकर्ता हिरण्यगर्भ को माना है। साथ ही यह भी कहा है कि योगविद्या से पुरातन कोई विद्या तथा दर्शन नहीं है और हिरण्यगर्भ ही सबसे प्राचीन हैं। ऋग्वेद में भी हिरण्यगर्भ की प्राचीनता प्रमाणित की गई है, तथा उनकी पुरातनता को स्वीकार करते हुए ऋग्वेद के ऋषि ने उनके स्तुति मन्त्र गाये हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे, भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां, कस्मै देवाय हविषां विधेम॥ __-ऋग्वेद 10/121/1 . अर्थात्-हिरण्यगर्भ ही पहले उत्पन्न हुए थे। वे समस्त भूतों के स्वामी थे। उन्हीं ने इस पृथ्वी और स्वर्गलोक को धारण किया। उन अनिर्वचनीय देव की हम अर्चना करते हैं। श्रीमद्भागवत (5/9/13), अद्भुत रामायण (15/6), वायुपुराण (4/78) आदि में भी इसी प्रकार के उल्लेख प्राप्त होते हैं कि हिरण्यगर्भ ही सबसे पुरातन हैं और उन्होंने ही योगविद्या का प्रारम्भ किया था। ___श्री नीलकण्ठ ने 'महानिति च योगेषु' सूत्र की टीका करते हुए स्पष्ट कहा योगेषु एष महानिति प्रथमं कार्यम्। अर्थात्- उन हिरण्यगर्भ महाराज की यही 'महान् इति' है कि उन्होंने वेदों से भी पहले योगविद्या अथवा पराविद्या का प्रादुर्भाव किया था। 1. सूत्रकृतांग 1/2/1/1 2. (क) भगवान् ऋषभदेवो योगेश्वरः। (ख) नानायोगश्चर्याचरणे भगवान कैवल्यपतिर्ऋषभः। 3. हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः। -श्रीमद्भागवत 5/4/3 -श्रीमद्भागवत 5/2/25 -महाभारत 12/349/65 • योग का प्रारम्भ *23*
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy