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________________ 31 योग का प्रारम्भ योग का प्रारम्भ शान्ति की खोज से हुआ । शक्ति, सत्ता और धन के भार में दबा मानव जब भीतर से एक अकुलाहट, अतृप्ति और प्रतिद्वन्द्वी के भय की अनुभूति से बेचैन होकर कभी शान्त, एकान्त स्थान में बैठा होगा, बाह्य चिन्ताएँ छूट गई होंगी, मन स्थिर हुआ, अपने आप पर केन्द्रित हुआ, और भीतर में छुपे हुए शान्ति स्रोत से आप्लावित हो सहसा कुछ शीतलता, निर्भयता और परितृप्ति का अनुभव करने लगा तो वह चकित रह गया होगा, आज तक जो तृप्ति और शान्ति नहीं मिली, वह कुछ ही क्षणों में स्थिर और शान्त होकर बैठने से अनुभव हुई तो इस रहस्य की खोज में वह आगे बढ़ा। बाहर से भीतर में प्रविष्ट हुआ। शरीर एवं मन के केन्द्रों को टटोलने लगा, पहचानने लगा तो उसके सामने रहस्यों का संसार खुलने लगा, शान्ति का एक अजस्त्र स्रोत - सा उमड़ने लगा और उसे लगा - शान्ति तो मेरे भीतर ही है। बाहर में अशान्ति है, भीतर में शान्ति है। वह बाहर से हटा, भीतर में मुड़ा; भोग से हटा, योग में जुटा । बस, यह शान्ति की खोज ही मनुष्य को योग की तरफ ले गई। 'योग' शान्ति का मार्ग और आन्तरिक शक्तियों को जानने, जगाने का फार्मूला बन गया। योग का प्रारम्भ कब हुआ ? इसका उत्तर कठिन भी है, सरल भी। योग के प्रारम्भ का निश्चित काल व तिथि आज तक कोई नहीं खोज सका, किन्तु यह बहुत ही सरल व स्पष्ट बात है कि जब से मनुष्य ने शान्ति की खोज प्रारम्भ की तभी से योगविद्या का प्रारम्भ हुआ । आज के उपलब्ध साहित्य, परम्परा और साक्ष्यों के आधार पर भगवान ऋषभदेव योगविद्या के आदि प्रवर्तक माने जाते हैं। जैन आगम ग्रन्थों के अनुसार इस अवसर्पिणी युग के वे प्रथम योगी व योगविद्या के प्रथम उपदेष्टा थे। उन्होंने सांसारिक (भौतिक) वासनाओं से व्याकुल, धन- सत्ता और शक्ति 22 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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