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________________ इस प्रकार श्रमण (जैन) परम्परा के अनुसार भगवान ऋषभदेव योग-विद्या के प्रारम्भकर्ता थे और वैदिक परम्परा के अनुसार हिरण्यगर्भ; किन्तु वस्तुतः ये दो महापुरुष न होकर एक ही थे; क्योंकि ऋषभदेव के अन्य नामों में एक नाम हिरण्यगर्भ भी था; जैसा कि महापुराणकार ने कहा है सैषा हिरण्मयी वृष्टिः धनेशेन निपातिता। विभोर्हिरण्यगर्भत्वमिव बोधयितुं जगत्॥ -महापुराण 12/95 अर्थात्-जब भगवान ऋषभदेव गर्भ में आये तो धनपति कुबेर ने माता-पिता का भवन हिरण्य की वृष्टि करके भर दिया अतः वे (ऋषभदेव) जगत् में हिरण्यगर्भ के नाम से प्रख्यात हुए। अतः जैन और वैदिक दोनों ही परम्पराओं की मान्यता के अनुसार भगवान ऋषभदेव अपर नाम हिरण्यगर्भ योगविद्या के आदिप्रणेता हैं। भगवान ऋषभदेव द्वारा प्रदत्त यह योगविद्या सुदीर्घ काल तक चलती रही। इस बीच असंख्य लोग योग साधना करते रहे और संसार से मुक्ति प्राप्त करते रहे। योगियों की परम्परा का प्रमाण हमें मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त मुद्राओं में मिलता है। वहाँ कायोत्सर्ग मुद्रा में एक ध्यानावस्थित योगी की मोहर (seal)' प्राप्त हुई है। स्व. राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर ने इसे जैन तीर्थंकर की मूर्ति माना है। वे लिखते हैं-"मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त मोहरों में से एक में योग के प्रमाण मिले हैं। एक मोहर में एक ओर वृषभ तथा दूसरी ओर ध्यानस्थ योगी हैं, जो जैन धर्म के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव हैं। उनके साथ भी योग की परम्परा लिपटी हुई है। 2 इसके अतिरिक्त पटना के निकट लोहानीपुर से प्राप्त नग्न कायोत्सर्ग स्थित मूर्ति से भी इस बात की पुष्टि होती है। इस प्रकार योग, योगी और योग-प्रक्रियाएँ सुदीर्घकाल तक चलती रहीं। किन्तु एक विशेष बात यह हुई कि काल प्रवाह से 'योग' अनेक प्रकार की विद्याओं, विशेषकर आध्यात्मिक विद्याओं और मोक्षप्राप्ति के उपायों में प्रयुक्त होने लगा। अनेक प्रकार के योग प्रचलित हो गये; यथा-ईश्वरभक्तियोग, तन्त्रयोग, राजयोग, ज्ञानयोग आदि-आदि। 1. 2. 3. Moderm Review,August 1932, pp. 155-156 आजकल, मार्च 1962, पृ. 8 जैन साहित्य का इतिहास, पूर्वपीठिका, प्राक्कथन, पृष्ठ 10. • 24 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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