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आध्यात्मिक साधना का दूसरा लक्ष्य है-मन की शक्ति को जाग्रत करना। मन असीम शक्ति का भण्डार है। जिस प्रकार पावर हाउस में विद्युत संचित रहती है, वहीं उसका उत्पादन होता है और वहीं से वह शक्ति तारों द्वारा सम्पूर्ण नगर में फैलती है, नगर के अणु-अणु को प्रकाशित करती है। उसी प्रकार शरीर में मन एक पावर हाउस है। समस्त शक्ति मन में-अवचेतन और चेतन मन में संचित रहती है, वहीं उसका उत्पादन होता है और सम्पूर्ण शरीर में स्थित ज्ञानतन्तुओं-कोशिका समूह द्वारा वह सम्पूर्ण शरीर में फैलती है, शरीर को ऊर्जा, स्फूर्ति और क्रियाशक्ति से सम्पन्न करती है।
जिस मनुष्य के मन की शक्ति जितनी जाग्रत होती है वह उतना ही ऊर्जस्वी, तेजस्वी और क्रियाशक्ति से सम्पन्न होता है।
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मानव-मन में शक्ति का अक्षय कोष भरा पड़ा है। मनोवैज्ञानिकों के मतानुसार सम्पूर्ण मन का 90 प्रतिशत भाग चेतना की अतल गहराइयों में डूबा रहता है, यह मानव का अवचेतन मन है जो अव्यक्त रहता है और 10 प्रतिशत ही चेतन मन है। यह चेतन मन भी अत्यधिक शक्तिशाली है। इसकी शक्ति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह समस्त ब्रह्माण्ड को जानने की क्षमता रखता है। इस चेतन मन का 7 प्रतिशत ही मानव अभी तक उपयोग कर पाया है और इतनी शक्ति से ही तमाम वैज्ञानिक चमत्कार सम्भव हो सके हैं; तो जब चेतन मन ही पूर्ण रूप से सक्रिय हो जाएगा, तब तो उसकी क्षमता और शक्ति का अनुमान लगाना भी कठिन हो जाएगा।
अतः आध्यात्मिक साधना का लक्ष्य इस चेतन तथा अवचेतन मन को जागृत करके उसकी क्षमताओं और शक्तियों का विकास करना है।
लेकिन मन और शरीर (इन्द्रियों सहित, क्योंकि इन्द्रियाँ भी तो शरीर में ही अवस्थित हैं) अनादिकालीन संस्कारों के प्रभाव से संसाराभिमुखी हैं, इनकी पंचेन्द्रिय-विषयों में सहज अभिरुचि है, यह स्वाभाविक रूप से विषयवासनाओं की ओर दौड़ते हैं, आत्मा की ओर इनका रुझान कम है। अतः साधक आध्यात्मिक साधना द्वारा शरीर और मन की शक्तियों को जागृत तो करता है, किन्तु उन पर आत्मा का नियन्त्रण रखता है। वह मन रूपी अश्व और शरीर रूपी रथ को बलवान और सुदृढ़ तो रखता है किन्तु बे-लगाम नहीं छोड़ता; कुशल रथी के समान वह लगाम अपने (आत्मा के) हाथों में रखता है; चेतना का नियन्त्रण इन दोनों पर स्थापित करता है।
आध्यात्मिक साधना का लक्ष्य है-शरीर और मन की शक्तियों को जागृत करना और उन पर आत्मा का / चेतना का नियन्त्रण रखना।
* 10 * अध्यात्म योग साधना *