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________________ जितना तेजस्वी होगा उसकी बुद्धि भी उतनी ही तीव्र होगी लेकिन वह बुद्धि परोपकार, निर्माण आदि शुभ कार्यों में प्रवृत्त होगी अथवा अशुभ कार्यों में प्रवृत्त होकर पर-पीड़क बन जायेगी-यह मनोमय कोष पर निर्भर है। जिस व्यक्ति का मनोमय कोष जितना निर्मल होगा उसकी प्रवृत्तियाँ भी उतनी ही शुभ होंगी। (4) विज्ञानमय कोष विज्ञानमय कोष आत्मा पर चौथा आवरण है। यह और भी सूक्ष्म होता है। सूक्ष्मता की दृष्टि से यह उपर्युक्त तीनों कोषों से अधिक सूक्ष्म होता है। विज्ञानमय कोष में अवस्थित बुद्धि सारग्राही बन जाती है। विज्ञानमय कोष में संकल्प-विकल्प और संवेगों की अवस्थिति नहीं होती, क्योंकि वे सब मन के कार्य हैं। (5) आनन्दमय कोष यह आत्मा का अन्तिम आवरण है और आत्मा के निकटतम सम्पर्क में है। यह आत्मा के आनन्दमय स्वरूप को ढकता है। यद्यपि यह पौद्गलिक है, किन्तु इतना सूक्ष्म है कि आत्मिक आनन्द को पूरी तरह आवृत नहीं कर पाता ये पाँचों प्रकार के कोष अथवा आत्मा के आवरण पौद्गलिक होते हुए भी उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं। आत्मा इन सबसे अलग चेतन द्रव्य है, वही इन सबका नियंता है। इस आत्मा को पहचानने व अनुभव करने के लिए योग-साधना ही एक मार्ग है। योग द्वारा आत्मा का दर्शन, स्वसंवेदन, आत्मानुभूति, आत्मा का ज्ञान और आत्मा का जागरण सम्भव होता है। आध्यात्मिक साधना का लक्ष्य ... योग साधना को ही आध्यात्मिक साधना कहा जाता है। आध्यात्मिक साधना का लक्ष्य है-शरीर और मन की शक्ति को जागृत करना। जैन आगमों का स्पष्ट आघोष है कि तप-साधना वही उचित है, जिसमें इन्द्रियों, शरीर और मन की शक्ति क्षीण न हो और चित्त में आकुलता न उत्पन्न हो, मन सहज रूप से ध्येय की ओर उन्मुख हो और समाधि की प्राप्ति हो। ___आत्मिक साधना के नाम पर शरीर और इन्द्रियों को अत्यधिक कुश करके उन्हें अक्षम बना देना उपयुक्त नहीं है। यह निश्चित है कि शरीर के बिना आध्यात्मिक साधना नहीं हो सकती और दुर्बल शरीर से भी साधना होना सम्भव नहीं है। इसीलिये कहा गया है-'शरीरमाद्यं खलुधर्म साधनम्'। अतः शरीर (तैजसशरीर) की शक्ति को जागृत कर ऊर्ध्वगामी बनाना आध्यात्मिक साधना का प्रथम लक्ष्य है। * मानव शरीर और योग.9.
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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