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151, आगे की प्रतिमाएँ : तप के साथ आसन- जय 151, आठवीं, नवीं, दसवीं, ग्यारहवीं प्रतिमा का स्वरूप 151, बारहवीं प्रतिमा का स्वरूप 152, सम्यग्ननुपालनता के तीन दुष्परिणाम 152, सम्यगनुपालनता के तीन कल्याणकारी परिणाम 153, प्रतिमायोग का
महत्व 153 |
4. जयणायोग साधना (मातृयोग )
154-161
जयणायोग क्या है? 154, यतना का अभिप्राय 154, अष्ट प्रवचन माता (तीन गुप्ति और पाँच समिति) 155, गुप्तियाँ 155, गुप्ति का लक्षण 155, गुप्ति के भेद 156, (1) मनोगुप्ति 156, (2) वचनगुप्ति 156, कायगुप्ति 157, मनः समिति 157, वचन और काय समिति 158, समिति 158, समिति का लक्षण 158, समिति के भेद 158, ईर्यासमिति 158, इसका चार प्रकार से पालन 158, ( 2 ) भाषा समिति 159, इसका चार प्रकार से पालन 159, (3) एषणा समिति 159, इसका चार प्रकार से पालन 160, ( 4 ) आदान-निक्षेपणा समिति 160, इसके पालन के चार प्रकार 160, (5) परिष्ठापनिका समिति 160, स्थंडिल भूमि के चार प्रकार 160, इस समिति के पालन के चार प्रकार 161 | 5. परिमार्जनयोग-साधना ( षडावश्यक )
162-176
परिमार्जन की आवश्यकता 162, परिमार्जन की विधि, आवश्यक 162, आवश्यक, जैनयोग का अनिवार्य अंग 163, आवश्यक साधना के छह अंग 164, साधना का वैज्ञानिक क्रम 164, समतायोग बनाम सामायिक की साधना 166, चार प्रकार की शुद्धि 167, द्रव्यशुद्धि 167, क्षेत्रशुद्धि 167, कालशुद्धि 167, भावशुद्धि 168, (क) मनः शुद्धि 168, (ख) वचनशुद्धि 168, वचन के दो भेद अन्तर्जल्प और बहिर्जल्प (सूक्ष्म एवं स्थूल वचन योग) 168, (ग) कायशुद्धि 169, ( 2 ) चतुर्विंशतिस्तव : भक्तियोग का प्रकर्ष 169, (3) वन्दना : समर्पणंयोग 170, ( 4 ) प्रतिक्रमण : आत्म-शुद्धि का प्रयोग 170, ( 5 ) कायोत्सर्ग : देह में विदेह साधना 170, कायोत्सर्ग की विधि 171, कायोत्सर्ग के लाभ 171, (1) देहजाड्य शुद्धि 171, ( 2 ) मतिजाड्यशुद्धि 172, ( 3 ) सुख-दुःख तितिक्षा 172, (4) अनुप्रेक्षा 172, ( 5 ) ध्यान 172, शारीरिक दृष्टि से कायोत्सर्ग के लाभ 172, (6) प्रत्याख्यान : गुणधारण की प्रक्रिया 173, प्रत्याख्यान के आठ विशिष्ट नियम 174, षडावश्यक : सम्पूर्ण अध्यात्मयोग 175 |
6. ग्रन्थिभेदयोग-साधना
177-188
ग्रन्थि का अभिप्राय 177, मानसिक ग्रन्थियाँ 177, आत्मिक गुणों की अपेक्षा से ग्रन्थियों का दो भागों में वर्गीकरण 177, ग्रन्थि और शल्य 178, जैन मनोविज्ञान के अनुसार दो प्रकार की ग्रन्थियाँ 178, (वैदिक परम्परा द्वारा मान्य तीन हृदय ग्रन्थियाँ - (1)
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