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आगामी कर्म (2) संचित कर्म (3) प्रारब्ध कर्म अथवा ब्रह्मग्रन्थि, विष्णुग्रन्थि और रुद्रग्रन्थि तथा इन ग्रन्थियों के भेदन की प्रक्रिया और परिणाम 178 - 180 ) ग्रन्थियां कैसे निर्मित होती हैं ? 179, ग्रन्थियों की अवस्थिति 181, आधुनिक सभ्यता का उपहार : विभिन्न ग्रन्थियां 182, ग्रन्थियां कारण हैं- दोहरे व्यक्तित्व की 183, ग्रन्थियों के मूल कारण और आधार 184, ग्रन्थि - भेदयोग की साधना 184, ग्रन्थिभेद की प्रक्रिया एवं क्रम 186, ग्रन्थिभेद साधना के परिणाम 188 ।
7. तितिक्षायोग-साधना
189-199
तितिक्षा का अभिप्राय 189, परीषहजय: समत्व की साधना 189, उपसर्ग विजय 193, उपसर्ग और परीषह : श्रमण की तितिक्षा की कसौटी 193, गृहस्थ साधक के जीवन में तितिक्षायोग 194, तितिक्षायोग साधना का उत्कर्ष : दश श्रमण धर्म 195, दस श्रमण धर्म और तितिक्षायोग 196, तितिक्षायोग की निष्पत्तियाँ 199 ।
8. प्रेक्षाध्यानयोग-साधना
200-211
प्रेक्षाध्यान-योग 200, प्रेक्षाध्यान क्या है ? 200, प्रेक्षाध्यान का सूत्र 201, प्रेक्षाध्यान की विधि एवं प्रकार 203, ( 1 ) काय - प्रेक्षा 203, ( 2 ) श्वास- प्रेक्षा 205, ( 3 ) मानसिक संकल्प-विकल्पों की प्रेक्षा 207, (4) कषाय- प्रेक्षा 207, ( 5 ) अनिमेष - पुद्गल द्रव्य की प्रेक्षा 208, (6) वर्तमान क्षण की प्रेक्षा 209, प्रेक्षाध्यान से साधक को लाभ 210 |
9. भावनायोग साधना
212-230
अनुप्रेक्षा का आशय 212, बारह वैराग्य भावनाएँ 213, ध्यान की अपेक्षा से भावनाओं का वर्गीकरण 213, (1) अनित्य अनुप्रेक्षायोग - शरीरासक्ति - त्याग साधना 214, अनित्य भावना की साधना के चार सूत्र 214, (2) अशरण अनुप्रेक्षा - पर - पदार्थों से विरक्ति की साधना 215, (3) संसार अनुप्रेक्षा : वैराग्य की ओर बढ़ते कदम 216, (4) एकत्व . अनुप्रेक्षा : संयोगों से विरक्ति 217, ( 5 ) अन्यत्व भावना : भेदविज्ञान की साधना 218, (6) अशुचि भावना : पावनता की ओर प्रयाण 218, ( 7 ) आस्रव भावना : अन्तर् भावों का निरीक्षण 219, (8) संवर भावना : मुक्ति की ओर चरणन्यास 220, (9) निर्जरा भावना : आत्मशुद्धि की साधना 221, ( 10 ) धर्म भावना : आत्मोन्नति की साधना 221, (11) लोक भावनाः आस्था की शुद्धि 222, ( 12 ) बोधिदुर्लभ भावना : अन्तर्जागरण की प्रेरणा 222, ज्ञान की जुगाली 223, वैराग्य भावनाएँ 223, अनुप्रेक्षाओं के चिन्तन से लाभ 224, योग भावनाएँ 225, योग भावनाएँ ध्यान को पुष्ट करने वाली 226, ( 1 ) मैत्री भावना : आत्मौपम्य भाव की साधना 227, (2) प्रमोद भावना : गुण- ग्रहण की साधना 228, (3) कारुण्य भावनाः अभय की साधना 228, ( 4 ) माध्यस्थ भावना विपरीतता में
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