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________________ योगनिष्णात गुरु की आवश्यकता अब योग के विषय में सब से अधिक महत्त्वपूर्ण और विचारणीय जो बात है उसकी ओर भी पाठकों का ध्यान आकर्षित किया जाता है। वह है सद्गुरु की प्राप्ति। यों तो व्यावहारिक और पारमार्थिक प्रत्येक विषय का यथार्थानुभव प्राप्त करने के लिए योग्य अनुभवी गुरु की आवश्यकता रहती ही है, परन्तु योग के विषय में तो योगनिष्णात गुरु की असाधारणरूप में आवश्यकता है। कारण कि योग-साधना का विषय व्यावहारिक अनुभवरूप है जो मार्गदर्शक योगनिष्णात गुरुजनों के साहचर्य के बिना कथमपि उपलब्ध नहीं हो सकता। योग और उसके अंगों में प्राप्त होने वाले आसन, प्राणायाम, ध्यान और समाधि के व्यावहारिक स्वरूप का अनुभव तब तक नहीं हो सकता जब तक कि गुरु उसके तत्त्व का व्यावहारिक प्रयोगात्मक शिक्षण न दे सके। इसके अतिरिक्त सद्गुरु के बिना किये जाने वाले योगानुष्ठान में लाभ की अपेक्षा हानि की अधिक संभावना रहती है। आसन और मुद्रा का ज्ञान तो असाधारणरूप से गुरुजनों के व्यावहारिक शिक्षण की अपेक्षा रखता है। इसलिये योग की अभ्यासी आत्मा को योग निष्णात गुरुजनों का साहचर्य सब से अधिक उपादेय ho उपसंहार योग-विषय में प्रवेश करने के लिए जिन उपयोगी विषयों का प्रथम ज्ञान होना आवश्यक है उनका यह संक्षिप्त वर्णन उपोद्घात के नाम से पाठकों के समक्ष उपस्थित कर दिया है। इस विषय में इतना और स्मरण रखना चाहिये कि समाहित अर्थात् एकाग्रचित्त वाले साधक को तो समाधियोग-ध्यानयोग ही अनुष्ठेय है और व्युत्थानचित्त-विक्षिप्तचित्त को प्रथम चित्त के मलविक्षेप को दूर करने के लिये क्रियायोग का अनुष्ठान करना पड़ता है। अतः समाधि और क्रियारूप से लक्षित होने वाले द्विविध योग में समाहित और विक्षिप्त दोनों प्रकार के साधकों को मर्यादित अधिकार सम्प्राप्त है। आशा है कि योगविषयक संक्षेपरूप से किये गये इस उपोद्घात से योग-विषय में प्रवेश करने के लिए पाठकों को कुछ न कुछ सुविधा अवश्य प्राप्त होगी। -जैनमुनि आत्माराम (आचार्य सम्राट) ००० .52
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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