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________________ अनुकम्पा और आस्तिक्य, ये पाँच सद्गुण' उसमें अपने आप ही आ उपस्थित होते हैं। तात्पर्य कि ये पाँचों, शुद्ध श्रद्धा किंवा सम्यग्दर्शन के परिचायक हैं। जहाँ पर ये होंगे वहाँ पर सम्यग्दर्शन अवश्य होगा अर्थात् साधक के हृदय की शुद्ध श्रद्धा को परखने के लिए ये पाँचों सद्गुण कसौटी का काम देते हैं। जहाँ पर ये नहीं, वहाँ पर श्रद्धा नहीं किन्तु श्रद्धाभास है, सम्यग्दर्शन नहीं अपितु उसका ढोंग है। (1) सम-उदय हुए क्रोध, मान, माया आदि तीव्र कषायों का त्याग शम कहलाता है। (2) संवेग-मोक्ष विषयक तीव्र अभिलाषा का नाम संवेग है। (3) निर्वेद-सांसारिक विषय-भोगों में विरक्ति अर्थात् उनको हेय समझकर उनमें अनादरवृत्ति रखना निर्वेद है। (4) अनुकम्पा - दुःखी जीवों पर दया करना अर्थात् किसी प्रकार का स्वार्थ न रखते हुए दु:खी प्राणियों के दुःख को दूर करने की इच्छा और तदनुकूल प्रयत्न करने को अनुकम्पा कहते हैं। (5) आस्तिक्य - सर्वज्ञ - कथित पदार्थों में शंकारहित होना अर्थात् पूर्ण विश्वास करना आस्तिक्य है । इन पाँच कारणों से आत्मगत सम्यक्त्व की पहचान होती है. अर्थात् उसके अस्तित्व का बोध होता है। 1 नोट- आगमों में स्पष्ट लिखा है कि संशयात्मा को समाधि की प्राप्ति नहीं होती । यथा - 'वितिगिंछ समावण्णेण अप्पाणेणं णो लभति समाधिं ' ( आचारांग अ. 5, उ. 5 ) - (छा.) विचिकित्सां समापन्नेनाऽऽत्मना नो लभ्यते समाधिः ) । त्याग - श्रद्धा के अतिरिक्त दूसरा गुण त्याग है। योग मार्ग में प्रयाण करने वाले साधक में श्रद्धा की भांति त्याग वृत्ति का होना भी परम आवश्यक है। जब तक हृदय में त्याग - वृत्ति की भावना जागृत नहीं होती, तब तक योग में अधिकार प्राप्त होना दुर्घट है। त्याग-वृत्ति में एषणाओं का त्याग ही प्रधान' है। लोकेषणा, पुत्रेषणा और धनादि की एषणा, ये तीनों ही एषणाएँ - इच्छाएँ योग - प्राप्ति में जीवन के आध्यात्मिक विकास में 1. 'कृपाप्रशमसंवेगनिर्वेदास्तिक्यलक्षणाः। गुणा भवन्तु यच्चित्ते स स्यात् सम्यक्त्वभूषितः । ' 2. श्रीसर्वज्ञप्रणीतसमस्त भावानामस्तित्वनिश्चयचिन्तनमास्तिक्यम्। 3. 'णो लोगस्सेसणं चरे' । ❖ 50 ❖ ( गुणस्थान क्रमारोह श्लोक 21 ) (गुणस्थान क्रमारोह श्लोक 21 की वृत्ति) - ( आचा. अ. 4, उ. 1, सू. 226 ) ।
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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