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________________ सबसे प्रथम अध्यात्मयोग का निर्देश किया है। उचित प्रवृत्ति से अणुव्रत-महाव्रत' से युक्त होकर मैत्री आदि चार भावनापूर्वक शिष्टवचनानुसार-आगमानुसार-जो तत्त्वचिन्तन करना है उसको अध्यात्मयोग कहते हैं। ___ यहाँ इतना स्मरण रहे कि अध्यात्मयोग की यह उक्त व्याख्या देशविरति नाम के पाँचवें गुणस्थान को-पाँचवीं भूमिका को प्राप्त हुए साधक को लक्ष्य में रखकर की गई है। कारण कि औचित्यपूर्वक-सम्यग्बोधपूर्वक व्रत-नियमादि के धारण करने की योग्यता इस पाँचवें गुणस्थान में ही प्राप्त होती है। यहाँ पर अध्यात्मयोग के तत्त्वचिन्तनरूप लक्षण में दिये गये औचित्य, वृत्तसमवेतत्व, आगमानुसारित्व और मैत्री आदि भावनासंयुक्तत्व, ये चार विशेषण बड़े ही महत्व के हैं। इन पर विचार करने से अध्यात्मयोग का वास्तविक रहस्य भलीभाँति समझ में आ जाता है। मैत्री आदि चार-(मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा) भावनाओं (जिनका वर्णन आगे किया जाने वाला है) से भावित होने वाला साधक पुरुष-(1) मैत्रीभाव से-सुखी जीवों के प्रति होने वाली ईर्ष्या का त्याग करता है; (2) करुणा से-दीन दुःखी जीवों के प्रति उपेक्षा नहीं करता है; (3) मुदिता से-उसका पुण्यशाली जीवों पर से द्वेष हट जाता है; और (4) उपेक्षाभावना से-वह पापी जीवों पर से राग-द्वेष दोनों को हटा लेता है। तात्पर्य कि इन उक्त चार भावनाओं के अनुशीलन से साधक आत्मा में ईर्ष्या का नाश, दया का संचार और राग-द्वेष की निवृत्ति सम्पन्न होती है। इस प्रकार अध्यात्मयोग के स्वरूप को समझकर उसे आत्मसात् करने पर पापों का नाश, वीर्य का उत्कर्ष, चित्त की प्रसन्नता, वस्तुतत्त्व का बोध और अनुभव का उदय होता है। यह अध्यात्मयोग की फलश्रुति. है। इसके अतिरिक्त अध्यात्मयोग की एक और व्याख्या नीतिवाक्यामृत नाम के ग्रन्थ में उपलब्ध होती है जो कि उपर्युक्त व्याख्या से सर्वथा विलक्षण है। 1. 'औचित्यावृत्तयुक्तस्य, वचनात्तत्त्वचिन्तनम्। ___मैत्र्यादिभावसंयुक्तमध्यात्मं तद्विदो विदुः' ।।357।। (योगबिन्दुः) 2. (क) . 'सुखीया दुखितोपेक्षां पुण्यद्वेषमधर्मिषु। रागद्वेषौ त्यजेन्नेता लब्ध्वाऽध्यात्म समाचरेत् ।।7।। (ख) 'अतः पापक्षयः सत्त्वं शीलं ज्ञानं च शाश्वतम्। तथानुभवसंसिद्धममृतं ह्यद एव नु' ॥8॥ (योगभेदद्वात्रिशिका-30 यशोविजयजी) (ग) 'मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापुण्यविषयाणां भावना - तश्चित्तप्रसादनम्'। (पातं. यो. 1/36)। 39.
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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