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तत्त्व होने के कारण यह शीतलताप्रदायक है और आध्यात्मिक शांति-शीतलता 'अहं' और 'मम' के विसर्जन से ही प्राप्त हो सकती है।) की प्रेरणा देता है।
ध्वनिविज्ञान' के अनुसार जब 'द्धा' वर्ण का उच्चारण तालु, जिह्वा को स्थिर करके तथा होठों को बन्द करके केवल कंठ स्थित स्वर यंत्र से किया जाता है तो ध्वनि तरंगें सीधी मूर्धा, ललाट और मस्तिष्क से टकराती हैं। इसीलिए साधक जब उपांशु जप में 'द्धा' का उच्चारण करता है तो उसे विलक्षण ऊर्जा (शक्ति व स्फूर्ति) का अनुभव होता है।
साधक इस पद की साधना लाल रंग में करता है। इस महामंत्र का तीसरा पद है-'णमो आयरियाणं'।
‘णमो आयरियाणं' पद में 12 वर्ण, 7 अक्षर, 7 स्वर, 5 व्यंजन, 5 नासिक्य व्यंजन और 5 नासिक्य स्वर हैं।
तत्त्वों की दृष्टि से 'णमो' और 'णं' आकाश तत्त्व, 'आ' 'य' और 'या'. वायु तत्त्व, 'रि' अग्नि तत्त्व है। यानी इस पद में वायु, अग्नि और आकाश-ये तीनों तत्त्व मौजूद हैं। समवेत रूप से पूरे पद का वर्ण पीला है।
इसीलिए साधक इस पद की साधना पीले रंग में करता है। पीला रंग साधक के ज्ञानवाही तंतुओं को अधिक संवेदनशील और शक्तिशाली बनाता है। यह रंग ज्ञानवाही और क्रियावाही तंतुओं के बीच सेतु का काम भी करता है।
चौथा पद है-'णमो उवज्झायाणं'।
‘णमो उवज्झायाणं' पद में 14 वर्ण, 7 अक्षर, 7 स्वर, 7 व्यंजन, 5 नासिक्य व्यंजन और एक नासिक स्वर है।
तत्त्वों की अपेक्षा से ‘णमो' और 'णं' आकाश तत्त्व, 'उ' और 'ज्' पृथ्वी तत्त्व, 'व' और 'झा' जल तत्त्व तथा 'य' वायु तत्त्व है। इस प्रकार इस पद में पृथ्वी, जल, वायु और आकाश-इन चारों तत्त्वों का उचित समन्वय है। इस पद का समवेत रंग निरभ्र आकाश के समान हल्का नीला है।
नीला रंग शांति-प्रदायक है। इससे साधक में क्षमाशीलता और तितिक्षा भाव का विकास होता है, वह क्रोधविजयी बनता है।
विशेष ध्यान देने की बात यह है कि इस पद में एक भी अग्नि तत्त्व
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वर्णों, अक्षरों, की विशिष्ट ध्वनि के लिए द्रष्टव्य है-Phoneticism by Sunit Kumar Chatterjee.
* 376* अध्यात्म योग साधना *