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________________ आप इस महामन्त्र के पहले पद को लीजिए! पहला पद है-णमो अरिहंताणं। ‘णमो अरिहंताण' में 13 वर्ण, अक्षर 7, स्वर 7, व्यंजन 6, नासिक्य व्यंजन 3, और नासिक्य स्वर 2 हैं। तत्त्व की दृष्टि से 'इ' (मातृका वर्ण के रूप में) और 'र' अग्नि बीज हैं, 'अ' और 'ता' वाय बीज हैं, 'ह', 'णमो' और 'णं' आकाश बीज हैं। यानी इस पद में अग्नि, वायु और आकाश तीनों तत्त्व मौजूद हैं। अग्नि तत्त्व के कारण अशुभ कर्मों की निर्जरा अधिक होती है, वायु तत्त्व निर्जरित कर्म-रज को उड़ाकर साफ कर देता है और आकाश तत्त्व भौतिक दृष्टि से साधक के चारों ओर एक कवच निर्मित करता है, साधकं की प्रतिबन्धक शक्ति को बढ़ाता है जिससे बाहर के विकार उसकी आत्मा, मन और शरीर में प्रवेश न कर सकें तथा आध्यात्मिक दृष्टि से साधक के आत्म-गुणों को अनन्त आकाश में व्याप्त करता है, उन्हें आकाश-व्यापी बनाता है। आकाश है ही अनन्तता (infinity) का प्रतीक। ___अब जरा रंग संयोजन पर आइये। मन्त्रशास्त्रों में साधक को निर्देश दिया गया है कि 'णमो अरिहंताणं' पद का ध्यान श्वेत रंग में करे। आज विज्ञान का साधारण विद्यार्थी भी जानता है कि बैंगनी, गहरा नीला, हल्का नीला, पीला, हरा, नारंगी और लाल इन रंगों के बिन्दु किसी ‘णमो अरिहंताणं' पद का सफेद रंग, ‘णमो सिद्धाणं पद का लाल रंग, ‘णमो आयरियाणं' पद का पीला रंग, णमो उवज्झायाणं' पद का नीला रंग और 'णमो लोए सव्वसाहूणं' का काला रंग-इन पदों की अपेक्षा से माना गया है। इन पदों में वर्ण संयोजन ही इस ढंग से हुआ है कि जब साधक अपनी प्राणधारा से इन पदों को अनुप्राणित करता है तब ये रंग स्वयं ही प्रगट होते हैं और अपनी शक्ति तथा चमत्कार दिखाते हैं। किन्तु अरिहंत भगवान का सफेद रंग, सिद्ध भगवान का लाल रंग, आचार्यदेव का पीला रंग, उपाध्यायजी का नीला रंग और साधुजी का काला रंग नहीं है। सिद्ध भगवान तो अवर्ण ही हैं; शेष चारों परमेष्ठी का भी सफेद, पीला, नीला, काला रंग नहीं है। अतः जहाँ ऐसा उल्लेख है कि 'साधक को अमुक परमेष्ठी की आराधना अमुक रंग में करनी चाहिए' वहाँ उस परमेष्ठी के वाचक पद की साधना समझनी चाहिए, न कि परमेष्ठी का रंग। * 374 - अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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