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योगविद्या के पाश्चात्य विद्वान इसे सर्पवत्वलयान्विता अग्नि (serpent fire) कहते हैं और मैडम ब्लैवेटस्की (Madame Blavetsky) - ये थियोसोफीकल सोसाइटी Theosophical Society की जन्मदाता थीं) इसे विश्वव्यापी विद्युत शक्ति (Cosmic Eletricity) कहती थीं। इसकी गति के विषय में बताते हुए उन्होंने कहा है कि प्रकाश 1,85,000 मील प्रति सैकिण्ड की गति से चलता है, जबकि कुण्डलिनी शक्ति की गति 3,45,000 मील प्रति सैकिण्ड है।
(Light travels at the rate of 1, 85, 000 miles per second, Kundalini at 3, 45, 000 miles a second.)1
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यह कुण्डलिनी शक्ति साधारणतया मानव शरीर में सोयी पड़ी रहती है, सुषुप्ति अवस्था में रहती है। किन्तु जब योगी प्राणायाम द्वारा प्राणशक्ति को इसमें संचारित करता है, सही शब्दों में ठोकर देता हैं प्राणशक्ति की; प्राणशक्ति को उस पर केन्द्रित करके ऊपर की ओर धक्का लगाता है, इसे ऊपर की ओर चढ़ने को प्रेरित करता है; तब इसकी सुषुप्ति दशा टूटती है और यह ऊर्ध्वारोहण करती है; ऊर्ध्वारोहण के क्रम में यह चक्रों का भेदन करती है।
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मैडम ब्लेवेट्सकी के कथन में कुछ अपूर्णता है। वास्तव में, प्रकाश की गति 186,000 मील प्रति सैकिण्ड है, विद्युत की गति 2, 88,000 मील प्रति सैकिण्ड और विचारों की गति 22, 65, 120 मील प्रति सैकिण्ड है। – सम्पादक
चक्रों की संख्या के बारे में कई विचारधाराएँ प्राचीन मनीषियों की प्राप्त होती हैं। साधारणतया चक्र सात माने जाते हैं - ( 1 ) मूलाधारसुषुम्ना के अन्तिम निचले सिरे में, (2) स्वाधिष्ठानमूलाधार से चार अंगुल ऊपर पेडू में, (3) मणिपूर - नाभि स्थान में, (4) अनाहतहृदय में, (5) विशुद्धि-कंठ में, (6) आज्ञा - भ्रूमध्य में, (7) सहस्रार - ब्रह्मरंध्र में । (देखिए चित्र )
* 326 अध्यात्म योग साधना :
सहस्त्रार चक्र आज्ञा चक्र
विशुद्धि चक्र
अनाहत चक्र
मणिपूर चक्र
स्वाधिष्ठान चक्र
मूलाधार चक्र