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चक्र के लिए योग ग्रंथों में 'कमल' शब्द दिया गया है। यह शब्द अधिक उपयुक्त है। जिस तरह कमल का फूल खिलता और बन्द होता है, उसका संकोच-विस्तार होता है, वही स्थिति इन चक्रों की है। जिस समय सुषुम्ना मार्ग में संचारित होती हुई प्राण-शक्ति इन चक्रों से टकराती है अथवा कुण्डलिनी शक्ति इनको ठोकर मारती है, योगी इन चक्रों को प्राणवायु के संसर्ग से अनुप्राणित करता है तो बन्द हुए अथवा संकुचित अवस्था में रहे हुए कमल खिल जाते हैं, और विकसित-विस्तृत हो जाते हैं। यही चक्र-वेध अथवा चक्रों का उन्मुकुलन या अनुप्राणन है। ___चक्रों अथवा कमलों का उन्मुकुलन अथवा अनुप्राणन कुण्डलिनी शक्ति के जागरण से होता है और कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होती है या तो हठयोग से अथवा भावनायोग से। साधक अपनी रुचि, क्षमता तथा योग्यता के अनुसार हठयोग की प्रक्रियाओं अथवा भावनायोग की साधना से कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करता है। साथ ही यह शक्ति सिर्फ सिद्धासन, पद्मासन, पर्यंकासन से ही जागृत होती है। श्वासन, दंडासन, लगुंडासन आदि आसनों से नहीं हो सकती। इन आसनों से कुण्डलिनी शक्ति का ऊर्ध्वारोहण संभव ही नहीं है।
___ कुछ आचार्यों ने आज्ञा और सहस्रारचक्र के मध्य में दो चक्रों की अवस्थिति
और मानी है-(1) मनःचक्र और (2) सोमचक्र। मनःचक्र का स्थान ललाट है, यह आज्ञाचक्र से लगभग 2 अंगुल ऊपर होता है, उसी में विचार उत्पन्न होते हैं तथा इन्द्रियविषयों (श्रवण, नेत्र, घ्राण, जिह्वा, स्पर्श इन्द्रियों के विषय) का स्थान भी वही है, यहीं से आज्ञावहा नाड़ी निकलती है। यह मूर्धास्थान से ऊपर अवस्थित
__ मनश्चक्र से ऊपर और सहस्रार चक्र से नीचे सोमचक्र है। यही निरालम्बपुरी तुरीयातीत अवस्था में रहने का स्थान है। इस स्थान (चक्र) में योगीजन तेजोमय ब्रह्म का दर्शन और अनुभव करते हैं, आत्मस्वरूप का अनुभव एवं साक्षात्कार करते हैं।
शक्ति सम्मोहन तंत्र में भी नव चक्रों का वर्णन है, किन्तु उनके नाम भिन्न हैं, दल आदि का भी विवरण नहीं दिया गया है। .. इन चक्रों के अतिरिक्त हठयोग में त्रिकूट, श्रीहाट, गोल्लाट और पीठ एवं भ्रमर गुम्फा नाम के पाँच चक्र और बताये गये हैं।
-परमार्थ पथ, पृ. 387-403; पं. श्री त्र्यम्बक शास्त्री खरे के 'श्री कुण्डलिनीशक्ति योग' निबन्ध के आधार पर।
* प्राण-शक्ति : स्वरूप, साधना, विकास और उपलब्धियाँ - 327 *