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________________ योग की और सूक्ष्म गहराई में जाने पर, सुषुम्ना के अन्दर एक और त्रिवर्ग है जो पहले त्रिवर्ग से भी सूक्ष्म है । वहाँ भी तीन नांड़ियाँ हैं - (1) वज्रा, (2) चित्रणी और (3) ब्रह्म नाड़ी। बस, ब्रह्मनाड़ी ही यौगिक शक्तियों का मूल और केन्द्र है। यही नाड़ी मस्तिष्क में, शिराओं आदि के रूप में जाकर हजारों भागों में फैल जाती है। यह नाड़ी (ब्रह्म नाड़ी) तैजस् परमाणुओं से निर्मित और तैजस् शरीर में अवस्थित है। योगशास्त्रों में कहे गये सप्त कमल (अथवा चक्र) भी इसी नाड़ी में स्थित हैं। योगी प्राणवायु द्वारा इसी नाड़ी को शक्तिमान्, स्फूर्तिवान् बनाता है और अनेक चमत्कारी शक्तियाँ प्राप्त करता है। इस स्थिति में मस्तिष्क एरियल का काम करता है, वही स्थूल और सूक्ष्म भौतिक तरंगों को पकड़ता है। ध्वनि तरंगों को, विचार - तरंगों को, विद्युत तरंगों को, रेडियोधर्मी तरंगों को सभी प्रकार की तरंगों को पकड़ता है और साधक भूत-भविष्य का जानकार, चुम्बकीय शक्ति वाला तथा अन्तर्दृष्टिसम्पन्न एवं अनेक प्रकार की शक्तियों का स्वामी बन जाता है। मेरुदण्ड के निचले अन्तिम भाग में सुषुम्ना के अन्दर रहने वाली ब्रह्म नाड़ी एक काले वर्ण के षट्कोण स्कन्ध (चक्रजाल) से बँधकर लिपट जाती है। पुराणों में इसी को कूर्म कहा गया है और यौगिक ग्रंथों में कुण्डलिनी । यह गुन्थन कुण्डलाकार है, इसीलिये इसका नाम कुण्डलिनी पड़ा । कुण्डलिनी शक्ति का ऊर्ध्वारोहण और चक्रभेदन योग और विशेष रूप से हठयोग में कुण्डलिनी की महिमा का बहुत गुणगान किया गया है। श्वेताश्वतर उपनिषद् में इसे 'नाचिकेत' अग्नि कहा गया है और बताया गया है कि जो साधक 'त्रि - नाचिकेत' बन जाते हैं, वे जन्म और मृत्यु से पार पहुँच जाते हैं - तरति जन्ममृत्यु उनका शरीर योगाग्निमय हो जाता है और वे जरा, व्याधि तथा मृत्यु से पार हो जाते हैंन तस्य रोगो न जरा न मृत्युः प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम् । - श्वेताश्वतर उपनिषद् चैनिक योग दीपिका में इसे आत्मिक अग्नि (spirit fire) कहा गया है— Only after the completed work of a hundred days will the Light be real, there will it become spirit fire. the heart is the fire; the fire is the Elixir. -I'lohin * प्राण-शक्ति : स्वरूप, साधना, विकास और उपलब्धियाँ 325
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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