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________________ दिखाई देता है और दर्शकों को चकित कर देता है। इस प्रकार साधक असाधारण सामर्थ्य का स्वामी बन जाता है। किन्तु इस असाधारण सामर्थ्य को पाने के लिए उसे पुरुषार्थ भी असाधारण ही करना पड़ता है। __ मेरुदण्ड अथवा सुषुम्ना नाड़ी अन्दर से पोली है। मनुष्य का यह पोला मेरुदण्ड 33 छोटे-छोटे अस्थि-खंडों से मिलकर निर्मित हुआ है। यह शरीर की आधारशिला है और यही यौगिक शक्तियों का भण्डार भी है। शरीर-विज्ञान के अनुसार मेरुदण्ड में अनेकों नाड़ियाँ हैं जो शरीर के विभिन्न अवयवों में पहुँचकर विभिन्न प्रकार के शारीरिक कार्य सम्पन्न करती हैं। किन्तु योगविद्या के अनुसार इसमें तीन प्रमुख नाड़ियाँ हैं-ईडा, पिंगला और सुषुम्ना। ये नाड़ियाँ सूक्ष्म औदारिक पूद्गलों से निर्मित हैं और सूक्ष्म औदारिक शरीर से सम्बन्धित हैं, इसलिए इन्हें चर्मचक्षुओं से नहीं देखा जा सकता; मेरुदण्ड को चीरने पर ये नाड़ियाँ दिखाई देतीं भी नहीं। इन तीनों नाड़ियों की तुलना विद्युत प्रवाह से की जा सकती है। विद्युत की दो धाराएँ होती हैं-एक, धन (positive) विद्युत और दूसरी ऋण (negative) विद्युत। दोनों प्रकार की धाराएँ अलग-अलग तारों (wires) के माध्यम से चलती हैं, उन तारों में प्रवाहित होती हैं। ये धाराएँ अलग-अलग चाहे जितने समय तक और चाहे जितनी दूर तक चली जायें, कोई शक्ति उत्पन्न नहीं होती, न बल्ब जलते हैं, न पंखे चलते हैं, और जैसे ही ये धाराएँ मिल जाती हैं इनका circuit complete हो जाता है, शक्ति का स्रोत उमड़ पड़ता है, नियोन लाइट जल उठती हैं, वातावरण प्रकाश में नहा जाता है, पंखे घूमने लगते हैं, मोटरें गतिमान हो जाती हैं, मिलों और कारखानों की मशीनें धड़धड़ाने लगती हैं, हजारों टनों भारी पत्थरों और लोहे के सामानों को क्रेन इधर से उधर उठाकर रख देती है, रेडियो पर गाने आने लगते हैं और टेलीविजन पर दूर-दूर के दृश्य दिखाई देने लगते हैं। विद्युत् शक्ति से असम्भव लगने वाले कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। यही स्थिति इन नाड़ियों के बारे में है। ईडा (चन्द्रनाड़ी) को ऋण विद्युत धारा (Negative) और पिंगला (सूर्य नाड़ी) को धन विद्युत धारा (Positive) कह सकते हैं तथा जहाँ ये दोनों मिलती हैं, वहीं सुषुम्ना नाड़ी है। जब ये मिल जाती हैं तभी यौगिक शक्तियों का स्रोत बह निकलता है। इस प्रकार सुषुम्ना नाड़ी एक तीसरी शक्ति है। * 324 * अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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