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नहीं हो पातीं। यदि कभी योगी को अपने शरीर के किसी भी अंग में स्नायविक वेदना मालूम होती है तो वह शरीर में जिस ओर - दायीं या बायीं तरफ स्नायविक या किसी भी प्रकार की पीड़ा होती है, उधर का ही स्वर रोक देता है, उसकी पीड़ा शान्त हो जाती है।,
साधक जुकाम और यहाँ तक कि श्वास रोग का उपशमन भी स्वर के माध्यम से कर लेता है। जब दमे का दौरा उठता है, उस समय जिस नासिका से स्वर चल रहा हो उसे रोक कर दूसरी नासिका से चला देता है, इससे दो चार मिनट में ही दमे का दौरा शान्त हो जाता है। प्रतिदिन इस क्रिया को करने से थोड़े दिनों में दमे की पीड़ा शान्त हो जाती है।
जुकाम के रोग में तो स्वर - विज्ञान अथवा स्वर - 1 र-नियमन क्रिया को पश्चिमी वैज्ञानिक और चिकित्सक भी उपयोगी मानते हैं। Chronic cough, cold catarrah aesthma में वे रोगी को breathing exercise की सलाह देते हैं ।
योगी नाड़ी-शुद्धि द्वारा शारीरिक और मानसिक स्वस्थता प्राप्त करता है। वह विपरीत वातावरण में भी स्वस्थ तथा नीरोग रहता है और स्वस्थ चित्त से योग साधना - प्राण साधना करता है।
इतना तो निश्चित है कि स्वस्थ तन-मन के अभाव में किसी भी प्रकार की साधना नहीं की जा सकती और न उसमें सफलता ही प्राप्त की जा सकती है, अतः स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन का होना आवश्यक है। नाड़ी -शुद्धि का योग साधक के लिए यही उपयोग है और इसीलिए वह स्वर-नियमन करता है, जिससे कि सुचारु रूप से प्राणायाम की साधना करके प्राण-शक्ति को शक्तिशाली बना सके।
प्राणायाम
प्राणायाम, प्राण-साधना का अन्तिम सोपान है। प्राणायाम को अंग्रेजी में breathing exercise कहते हैं । प्राणायाम की साधना से साधक को अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक लाभ होते हैं, चमत्कारिक सिद्धियाँ तथा लब्धियाँ प्राप्त होती हैं, उसका मनोबल, वचनबल तथा कायबल बढ़ता है, वचनसिद्धि प्राप्त होती है, अपने विचारों से दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता आती है, उसके व्यक्तित्व में चुम्बकीय शक्ति का विकास होता है, तैजस् शरीर का आभामंडल शक्तिशाली बनता है, यहाँ तक कि उसकी अन्तर्दृष्टि का विकास हो जाता है और वह इतना सक्षम हो जाता है कि
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