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________________ यह सम्पूर्ण लोक सूक्ष्म जीवों-प्राणधारियों से ठसाठस भरा है, इसी कारण तो संसार को प्राणमय कहा गया है। प्राणी कहाँ नहीं हैं? जल में असंख्य प्राणी हैं; वायु में प्राणी हैं; वनस्पति में, अग्नि में सर्वत्र प्राणी हैं। मनुष्य, पशु तो स्पष्ट ही प्राणी दिखाई देते हैं। अतः प्राण का लक्षण ही यह है कि जिनके द्वारा जीव जीता है. जीवित रहता है, उन्हें प्राण कहते हैं। प्राण के शास्त्रोक्त दश भेद जैन शास्त्रों में प्राण' दश प्रकार के बताये गये हैं(1) स्पर्शनेन्द्रिय बल प्राण (7) वचन बल प्राण (2) रसनेन्द्रिय बल प्राण. (8) काय बल प्राण (3) घ्राणेन्द्रिय बल प्राण (9) आनपान (श्वासोच्छ्वास) (4) चक्षुरिन्द्रिय बल प्राण बल प्राण (5) श्रोत्रेन्द्रिय बल प्राण (10) आयु बल प्राण (6) मनो-बल प्राण एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक सभी जीव प्राणधारी होते हैं, उनमें प्राण-धारा अथवा प्राण-शक्ति प्रवाहित रहती है। हाँ, यह बात अवश्य है कि एकेन्द्रिय आदि क्षुद्र एवं सूक्ष्म प्राणियों में प्राण-शक्ति का प्रवाह सूक्ष्म तथा अव्यक्त रहता है और संज्ञी पंचेन्द्रिय प्राणियों में व्यक्त। मनुष्य में तो वह प्रवाह और भी अधिक व्यक्त होता है। यद्यपि ये दश प्राण जैन शास्त्रों में बताये गये हैं, और इनके माध्यम से प्राण-शक्ति के प्रवाह को अभिव्यक्ति मिलती है, किन्तु योग की दृष्टि से प्राणधारा एक ही है, ये दश प्रकार के प्राण तो अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। जो प्राणधारा आँखों में प्रवाहित है, वह हाथ की अंगुलियों में है और वही सम्पूर्ण शरीर-त्वचा में भी है तभी तो अँगुलियों से आँख की संवेदना के उदाहरण मिलते हैं। 1. पंचय इन्दियपाणा मणवचकाया दु तिण्णि बलपाणा। आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होंति दसपाणा।। देखिए, इसी पुस्तक का पृष्ठ 6 -मूलाचार, गाथा 1191 2 * 316 अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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