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________________ असम्प्रज्ञात समाधि और जैन दर्शन के अनुसार शुक्लध्यान के तृतीय - चतुर्थ भेदों की फलश्रुति निर्वाण है । ' दूसरे शब्दों में, जैन दर्शन में वर्णित तेरहवें, चौदहवें गुणस्थान में पातंजलयोगसम्मत समाधि (सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात -समाधि के दोनों भेदों) का अन्तर्भाव हो जाता है। जैन दर्शन में वर्णित मुक्ति के सोपान-रूप जो चौदह गुणस्थान बताये गये हैं, उनकी अपेक्षा से यदि विचार किया जाय तो समाधि का प्रारम्भ आठवें अप्रमत्त गुणस्थान' से हो जाता है और उसकी पूर्णता चौदहवें अयोग-केवली गुणस्थान में होती है। आत्मा की जो स्थूल-सूक्ष्म चेष्टाएँ हैं, वे ही उसकी वृत्तियाँ हैं और उन वृत्तियों का कारण कर्मसंयोग योग्यता है; और इन स्थूल सूक्ष्म चेष्टाओं तथा उनके कारण कर्म- संयोग योग्यता का अपगम-क्षय- ह्रास अथवा हानि वृत्तिसंक्षय है। इन वृत्तियों का क्षय अचानक ही नहीं हो जाता, अपितु क्रमिक होता है। यह क्रमिक क्षय अथवा इन वृत्तियों की क्षय की परम्परा ही गुणस्थान क्रमारोह की संज्ञा से जैन शास्त्रों में अभिहित की गई है। वृत्तियों का क्षय साधक आठवें गुणस्थान अप्रमत्तविरत से प्रारम्भ करता है। इस गुणस्थान में साधक क्षपक श्रेणी पर आरोहण करता है। इसी 1. 2. मद (अभिमान), पंचेन्द्रियविषय, चार कषाय, चार विकथा, और निद्रा - ये प्रमाद हैं। जिस साधक में इन प्रमादों का अभाव हो जाता है, वह अप्रमत्त कहलाता है और उसका साधना सोपान- गुणस्थान अप्रमत्तविरत के नाम से अभिहित होता है। आध्यात्मिक उत्थान की दो श्रेणी हैं- (1) क्षपक और (2) उपशम । क्षपक श्रेणी पर आरोहण करने वाला साधक अनन्तानुबन्धी चतुष्क- क्रोध, मान, माया, लोभ और दर्शनत्रिक - मिथ्यात्व, सम्यक्मिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृतिमिथ्यात्व - इन सातों कर्म - प्रकृतियों का समूल क्षय कर देता है और उपशम श्रेणी पर आरोहण करने वाला साधक इन्हीं सातों कर्मप्रकृतियों का उपशमन करता है। क्षपक श्रेणी मोक्ष का साक्षात् करता है। * 308 अध्यात्म योग साधना इह च द्विधाऽसम्प्रज्ञातसमाधिः, सयोगकेवलिकालभावी अयोगकेवलिकालभावी च । तत्राद्यो मनोवृत्तीनां विकल्पज्ञानरूपाणां तद्बीजस्य ज्ञानावरणाद्युदयरूपस्य निरोधादुत्पद्यते । द्वितीयस्तु सकलाशेषकायदिवृत्तीनां तद्बीजानामौदारिकादि - शरीररूपाणामत्यन्तोच्छेदात् सम्पद्यते। - यो. वि. व्या. श्लोक 431 3.
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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