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________________ यह वृत्तिसंक्षयरूप योग कैवल्य-केवलज्ञान की प्राप्ति के समय और निर्वाण-प्राप्ति के समय साधक को उपलब्ध होता है। अर्थात् सयोग-केवली अवस्था (तेरहवें गुणस्थान) में तो विकल्परूप वृत्तियों का समूल नाश हो जाता है और अयोगकेवली अवस्था (चौदहवें गुणस्थान) में चेष्टारूप वृत्तियाँ भी समूल नष्ट हो जाती हैं। __ इन सबका फलित यह है कि सम्प्रज्ञातसमाधि तो ध्यान और समता रूप' है तथा असम्प्रज्ञात समाधि वृत्तिसंक्षयरूप है। क्योंकि सम्प्रज्ञात समाधि में समस्त राजस और तामस वृत्तियों का निरोध हो जाता है तथा सत्त्वगुणप्रधान प्रज्ञाप्रकर्षरूप वृत्तियों का आविर्भाव होता है एवं असम्प्रज्ञात समाधि में सम्पूर्ण वृत्तियों का क्षय हो जाता है और शुद्ध समाधि की सम्प्राप्ति होती है तथा इस समाधि दशा में साक्षात् आत्मस्वरूप का अनुभव होता है। यह शुद्धात्मा का अनुभव ही असम्प्रज्ञात समाधि है। ___जैन योग की अपेक्षा इस असम्प्रज्ञात समाधि के दो रूप होते हैं-(1) सयोगकेवलिभावी और (2) अयोगकेवलिभावी। इनमें से प्रथम तो विकल्प और ज्ञानरूप मनोवृत्तियों तथा उनके कारणभूत ज्ञानावरणीय, मोहनीय आदि कर्मों के क्षय से आविर्भूत होती है एवं दूसरी शारीरिक चेष्टारूप वृत्तियों और उनके कारणभूत औदारिक आदि शरीरों-नोकर्मों तथा भवोपग्राही कर्मों के क्षय से प्राप्त होती है। प्रथम अर्थात् सम्प्रज्ञात समाधि और जैन दर्शन के अनुसार एकत्ववितर्क अविचार शुक्लध्यान की फलश्रुति कैवल्य और दूसरी वृत्ति-इह स्वभावत एव निस्तरंगमहोदधिकल्पस्यात्मनो विकल्परूपाः परिस्पन्दनरूपाश्च वृत्तयः सर्वा अन्यसंयोगनिमित्ता एव। तत्र विकल्परूपास्तथाविधमनोद्रव्यसंयोगात् परिस्पन्दनरूपाश्च शरीरादिति। ततोऽन्यसंयोगे वा वृत्तयः तासां यो निरोधः तथाकेवलज्ञानलाभकालेऽयोगकेवलिकाले च। अपुनर्भावरूपेण - पुनर्भवनपरिहारस्वरूपेण। स तु स पुनः तत्संक्षयो वृत्तिसंक्षयो मत इति। (ख) विकल्पस्पंदरूपाणां, वृत्तीनामन्यजन्मनाम्। अपुनर्भावतो रोधः, प्रोच्यते वृत्तिसंक्षयः।। -योगभेद द्वात्रिंशिका, 25 (उपा. यशोविजयजी) सम्प्रज्ञातोऽवतरति ध्यानभेदेऽत्र तत्वतः। -योगावतार द्वात्रिंशिका 15 असम्प्रज्ञातनामा तु सम्मतो वृत्तिसंक्षयः। -योग द्वात्रिंशिका 21 1. 2. *शुक्लध्यान एवं समाधियोग - 307 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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