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________________ (17) अच्छे विचार और सुसंस्कारों का निर्माण होता है। (18) मस्तिष्क में नई-नई स्फुरणाएँ आती हैं।. ( 19 ) आत्मानुभूति होती है। (20) आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है। तपायोगी साधक के लिए स्वाध्याय जीवन - रस के समान है। इस तप की साधना-आराधना से साधक अपने बहुत से जन्मों के संचित कर्मों को क्षण मात्र में नष्ट कर देता है।' इसीलिए मनस्वी आचार्यों ने स्वाध्याय तप के समान किसी भी जप-तप को नहीं माना। भगवान महावीर ने स्वयं अपने श्रीमुख से स्वाध्याय तप को सभी दुखों का अन्त करने वाला बताया है। स्वाध्याय तप की महिमा सभी धर्मों, पन्थों और सम्प्रदायों ने स्वीकार की है। वस्तुतः स्वाध्याय तप तपोयोगी साधक के लिए चिन्तामणि रत्न के समान है। जिस प्रकार चिन्तामणि रत्न से व्यक्ति की सभी लौकिक इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं उसी प्रकार स्वाध्याय तप से तपोयोगी साधक अपने जीवन का चरम लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है, उसकी आत्मा आत्म-भाव में स्थिर हो जाती है। ( 5 ) ध्यान तप: मुक्ति की साक्षात् साधना ध्यान (धर्मध्यान और शुक्लध्यान ) तप मुक्ति की साक्षात् साधना है। इस तप के प्रभाव से मनुष्य जीवन-मरण रूप संसार-चक्र से मुक्त हो जाता है | ( 6 ) व्युत्सर्ग तप : ममत्व - विसर्जन की साधना व्युत्सर्ग का शाब्दिक अर्थ है - विशेष प्रकार के उत्सर्ग करना, (वि + उत्सर्ग), त्यागना, छोड़ना । आचार्य अकलंकदेव ने व्युत्सर्ग तप का लक्षण इस प्रकार दिया है 1. बहुभवे संचियं खलु सज्झाएणं खणे खवइ । 2. 3. 4. - चन्द्रप्रज्ञप्ति 91 न वि अत्थि न वि अ होई सज्झाय समं तवोकम्मं । - चन्द्रप्रज्ञप्ति 89, तथा बृहत्कल्प भाष्य 1169 सज्झाए वा निउत्तेण सव्वदुक्खविमोक्खणे । - उत्तरज्झयणाणि 26/10 ध्यान तप का विस्तृत विवेचन 'ध्यानयोग साधना' नामक अध्याय में किया गया है। - सम्पादक * आभ्यन्तर तप : आत्म-शुद्धि की सहज साधना 267
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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