SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विरासत शाश्वत सत्कृति यह पूर्णतः प्रगट है कि जैन योग से सन्दर्भित जो भी साहित्य है, वह सुतरां विराट् एवं नितरां व्यापक है। यह वह वाङ्मय है, जिसे जिधर से भी देखिये, जहाँ भी देखिये और जब भी देखिये, सहस्र - सहस्र, लक्ष-लक्ष, कोटि-कोटि, असंख्य - अनन्त प्रकाश किरणें विकीर्ण होती दिखेंगी । आराध्यदेव आचार्य श्री आत्माराम जी म.सा. यथार्थ अर्थ में जैन योग के शाब्दिक ही नहीं, अपितु आर्थिक अन्वेष्टा और प्रयोक्ता थे। उन्हीं के द्वारा प्रणीत 'जैनागमों में अष्टांग योग' ग्रन्थ आत्मिक स्मृतियों की ग्रन्थि बाँधने के साथ ही आग्रहों की ग्रन्थि से विमुक्त होने का मार्ग प्रशस्त कर देता है। इसी ग्रन्थ के आधार पर आचार्य श्री के पौत्र शिष्य प्रवर्त्तक श्री अमर मुनि जी महाराज ने प्रस्तुत बृहद् ग्रन्थ 'अध्यात्म योग साधना' का प्रणयन किया है। यह कालजयी ग्रन्थराज युग-युग तक अध्यात्म का आलोक-स्तम्भ बन कर पथ-प्रदर्शक बना रहेगा, ऐसा विश्वास है। " उपाध्याय रमेश मुनि " शास्त्री ' (उपाध्याय गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म.सा. के शिष्य) ❖ 25 ❖
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy