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मंगलमय संदेश वर्तमान युग में स्वस्थ जीवन की माँग विशेष रूप से अधिक है। मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को मिलने वाली चुनौतियाँ पहले से अधिक प्रबल हुई हैं। यही कारण है कि योग वर्तमान का एक चर्चित एवं प्रासंगिक विषय है। अनेक ग्रंथ इस विषय पर प्रकाशित हो रहे हैं। बाज़ार में इस विषय की पुस्तकें प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। योग के प्रति निरंतर बढ़ता यह आकर्षण आज जैन परम्परा में भी है। इसका मूल कारण है जैन साधना का ध्यान पर आधारित होना। ___ध्यान को भगवान् महावीर ने तप का एक रूप बतलाया है। अनेक जैन संत ध्यान के विशिष्ट साधक होने के कारण इतिहास में विख्यात रहे हैं। कुछ समय पूर्व ध्यान-साधना की यह प्रक्रिया कुछ मंद पड़ गई थी परंतु वर्तमान में इस विषय के लिए पुनः प्रचुर जागृति का प्रसार हो रहा है। निस्संदेह यह जागृति महत्वपूर्ण एवं उपादेय है। इसलिए भी कि जागृति से ही प्रत्येक उपादेय साधना का मंगल प्रारंभ हुआ करता है।
आत्मिक हर्ष का विषय है कि योग के बारे में 'अध्यात्म योग-साधना' नामक विशिष्ट कृति का प्रकाशन हो रहा है। इसके लेखक हैं-साहित्य-सम्राट आगम-रत्नाकर उत्तर भारतीय प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज। वर्तमान के जैन साहित्यकारों में श्री अमर मुनि जी महाराज की पहचान विशिष्ट है। यह पहचान अमिट अक्षरों में समय के पृष्ठ पर अंकित है। आगम-साहित्य के क्षेत्र में प्रवर्तक श्री ने जो कार्य संपन्न किया है, उसका महत्व किसी क्रांति से कम नहीं है।
प्रवर्तकप्रवर की विशिष्ट रचना है-'अध्यात्म योग-साधना'। विशिष्टता का कारण यह कि इस कृति में योग के इतिहास से लेकर इसके सिद्धांत एवं प्रयोग तक के सभी विषयों पर प्रकाश डाला गया है। योग के विभिन्न
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