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मंगल संदेश
जैन दर्शन में मूल तत्त्व है आत्मा। आत्मा से परमात्मा बनने के लिए मन, वचन, काया के योगों को संयम में स्थापित करते हुए उनको साधन बनाकर अपने साध्य तक पहुँचाना। योग से अयोग की ओर बढ़ना, शरीर
और आत्मा की भिन्नता का अहसास करते हुए हर श्वास वीतरागता में बिताना और वीतरागता में जीते हुए एक दिन पूर्ण वीतराग अवस्था को प्राप्त हो जाना, यही जैन योग साधना का लक्ष्य है। शरीर को नाव की तरह ठीक रखते हुए संसार सागर से पार होकर परमात्म अवस्था को, सिद्ध अवस्था को प्राप्त करना। आत्मा को अपने घर सिद्धालय पहुँचाना। इस हेतु जो पुरुषार्थ किया जाता है वह सम्यक् पुरुषार्थ है।
आचार्य सम्राट् पूज्य श्री आत्माराम जी म.सा. महान उच्च कोटि के आत्मार्थी संतरत्न थे। उन्होंने जैन आगमों में अष्टांगयोग ग्रन्थ की रचना कर हम सबके समक्ष एक अध्यात्म की रूपरेखा रखी। उसी कड़ी में उत्तर भारतीय प्रवर्तक, वाणी भूषण, साहित्य सम्राट श्री अमर मुनि जी म.सा. ने जैन योग साधना के ऊपर जो पुस्तक लिखी थी उसी का नवीन संस्करण प्रकाशित होने जा रहा है। यह पुस्तक सुज्ञ पाठकों को अध्यात्म की ओर अभिमुख करे और वे गुरुगम से आत्म-ध्यान साधना का प्रशिक्षण प्राप्त कर योग से अयोग की ओर पहुँचें, अपने लक्ष्य को प्राप्त करें, यही हार्दिक मंगल कामना।
सहमंगल मैत्री
-आचार्य शिवमुनि श्री महाविदेह तीर्थ क्षेत्रम्,
दिल्ली-41
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