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________________ प्रकार आस्रव के रूप में आत्मा में कर्मजल भरता है और वह संसार समुद्र में डूबता है। आस्रव भावना से अनुभावित साधक अपने मनश्छिद्रों को स्वयं देखता है, समझता है, पहचानता है, उन पर ध्यान केन्द्रित करता है, उन स्रोतों से आते-जाते कर्म-रूप-जल को समझने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार साधक अपनी दुर्बलता और भूल को पहचानता और पकड़ता है। भूल को पकड़ लेना बहुत बड़ी सफलता है, क्षमता है। वह आगे चलकर उनको बन्द भी कर देता है और समस्त दुर्बलताओं पर विजय भी पा लेता है। अतः आस्रव भावना से साधक कर्मास्रवों को जानने पहचानने में निपुण होता है। फिर उन्हें रोकने का प्रयत्न भी करता है जिसे आगे 'संवर भावना' में बताया गया है। (8) संवर भावना : मुक्ति की ओर चरणन्यास संवरयोग, जैन योग का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण योग है। साधक इस संवर भावना के अनुचिंतन द्वारा संवरयोग की ही साधना करता है। वह आस्रवों को-कर्मों के आगमन को रोकता है। आस्रव से विपरीत प्रवृत्ति करके वह संवर करता है। संवर' के लिए वह सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषाय और अयोग की साधना करता है। 1. 2. संवर की परिभाषा करते हुए श्री देवसेनाचार्य ने कहा हैरुन्धि छिद्द सहस्से जल जाणे जह जलं तु णासवदि । मिच्छत्ताइ अभावे तह जीवे संवरो हो । - बृहद् नयचक्र 156 जिस प्रकार नाव के छिद्र रुक जाने से उसमें जल प्रवेश नहीं करता, उसी प्रकार मिथ्यात्वादि का अभाव हो जाने पर जीव में कर्मों का संवर होता है। संवर के मुख्य 5 भेद हैं- (1) सम्यक्त्व, (2) विरति, (3) अप्रमाद, (4) अकषाय, (5) योगनिग्रह। 1.- स्थानांग 5/2/418 तथा समवायांग 5 किन्तु इसके 20 और 57 भेद भी माने जाते हैं। (क) पाँच समिति, तीन गुप्ति, दस धर्म, बारह अनुप्रेक्षा, बाईस परीषहजय, और पाँच चारित्र - ये संवर के 57 भेद हैं। - स्थानांगवृत्ति, स्थान 1 (तत्त्वार्थ सूत्र 9/2) (ख) सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषाय, आयोग, प्राणातिपातविरमण, मृषावाद - विरमण, अदत्तादानविरमण, अब्रह्मचर्यविरमण, परिग्रहविरमण, श्रोत्रेन्द्रिय संवर, चक्षुरिन्द्रियसंवर, घ्राणेन्द्रियसंवर, रसनेन्द्रियसंवर, स्पर्शनेन्द्रियसंवर, मनसंवर, वचनसंवर, कायसंवर, उपकरणसंवर, सूचीकुशाग्रसंवर- ये 20 भेद संवर के होते हैं। - प्रश्नव्याकरण, संवर द्वार तथा स्थानांग 10/709 220 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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