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प्रेक्षाध्यान- योग साधना
भगवान महावीर ने साधना क्षेत्र में बढ़ने वाले साधक को एक अनुभूत सूत्र दिया -
इह आणाकंखी पंडिए अणिहे एगमप्पाणं संपेहाए धुणे सरीरं
कसेहि अप्पाणं, जरेहि अप्पाणं ।
- आचारांग 4 / 460
अर्थात् - ज्ञानी पुरुष एकमात्र आत्मा की संप्रेक्षा करे; वह शरीर को प्रकंपित करे (धुने-जिस प्रकार रुई धुनने वाला धुनिया रुई को धुनता है, उस प्रकार धुने अर्थात् जर्जरित करे ), कषाय - आत्मा को कृश करे और उसे जीर्ण करे।
भगवान महावीर की साधना अप्रमाद की साधना थी और अप्रमाद का सर्वप्रथम सूत्र है - आत्म-दर्शन, आत्मा को देखना। भगवान ने साधक के लिए
कहा
संपिक्खए अप्पगमप्पएणं ।
अर्थात्-आत्मा को आत्मा से देखो । प्रेक्षाध्यान-योग
प्रेक्षाध्यान क्या है ?
भगवान ने आत्म-दर्शन को उत्सुक साधक के लिए शब्द दिया 'संपेहाए'। संपेहाए शब्द का अर्थ है गहराई से देखना, ध्यानपूर्वक देखना, या देखने में ही तल्लीन हो जाना; उस समय सिर्फ देखना ही हो, विचार न हो, निर्विचार की स्थिति आ जाये ।
दो शब्द हैं- प्रेक्षा और संप्रेक्षा (संपेहा ) । प्रेक्षा सामान्य जन की भाषा में सिर्फ देखने तक ही सीमित है, यद्यपि इसमें भी गहराई से देखा जाता है किन्तु निर्विचारता की स्थिति नहीं आ पाती। लेकिन ध्यानयोग की साधना में
200 अध्यात्म योग साधना