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________________ तितिक्षायोग साधना का उत्कर्ष : दश श्रमण धर्म तितिक्षायोग की साधना, श्रमण को सहनशील, सहिष्णु, समताभावी और अभय तो बनाती ही है किन्तु साथ ही साथ उसकी आत्मिक और चारित्रिक उन्नति भी करती है, श्रमण के चारित्रिक विकास का साधन भी बनती है। यह श्रमण के आध्यात्मिक शांति और प्रगति का मार्ग (The way of spiritual peace and progress) है। . श्रमण जो संयम की साधना करता है, उसका हार्द है-दस श्रमण धर्म। इन दस धर्मों से श्रमण की साधना को चार चाँद लगते हैं, उसकी साधना रत्नराशि के समान जगमगाने लगती है। आगमों और परवर्ती जैन ग्रंथों में दस विध श्रमणधर्मों' का उल्लेख हुआ है। यद्यपि कहीं-कहीं इनके क्रम में भेद मिलता है; किन्तु उनका स्वरूप एक ही है, उसमें समानता है, भेद नहीं है- . स्थानांग सूत्र में उनके नाम इस प्रकार दिये गये हैं (1) शांति, (2) मुक्ति, (3) आर्जव, (4) मार्दव, (5) लाघव, (6) सत्य, (7) संयम, (8) तप, (9) त्याग, (10) ब्रह्मचर्य। 1. (क) खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे, सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे। -स्थानांग 10/712 (ख) खन्ती य मद्दवऽज्जव मुत्ती तव संजमे य बोद्धव्वे। सच्चं सोयं आकिंचण च बंभं च जइधम्मो।। __-स्थानांगवृत्ति पत्र, 283 (ग) समवायांग, समवाय 10 (घ) खन्ती मुत्ती अज्जव मद्दव तह लाघवे तवे चेव। ___ संजम चियागिंऽकरण, बोद्धव्वे बंभचेरे य।। ___ -आचार्य हरिभद्र द्वारा उद्धृत प्राचीन गाथा (च) उत्तम खमा, मद्दवं, अज्जवं, मुत्ती, सोयं, सच्चो, संजमो, तवो, अकिंचणत्तणं बंभचेरेमिति। -आवश्यकचूर्णि (छ) उत्तमः क्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः। -तत्वार्थसूत्र 9/6 (ज) षट्प्राभृत-द्वादशानुप्रेक्षा, श्लोक 71-81 * तितिक्षायोग साधना - 195 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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