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________________ जिस प्रकार कसौटी पर खरा उतरा सोना सर्वजन-आदरणीय हो जाता है उसी प्रकार तितिक्षायोग में निष्णात साधक भी पूजनीय हो जाता है। गृहस्थ साधक के जीवन में तितिक्षायोग . तितिक्षायोग की साधना सिर्फ गृहत्यागी साधक योगी के लिए ही नहीं है, किन्तु गृहस्थयोगी के लिए भी इसका बहुत महत्त्व तथा उपयोग है। मनुष्य के जीवन में कठिनाइयाँ, संघर्ष और प्रतिकूल परिस्थितियाँ कदम-कदम पर मुँह बाए खड़ी हैं। यदि इन विपरीत स्थितियों से घबड़ाकर व्यक्ति पलायन करने लगे तो एक दिन का जीवन भी नहीं चल सकता। यश के बदले अपयश, लाभ के स्थान पर हानि, असफलता, अपमान, बड़ों से अवहेलना, आदि का क्षण-क्षण में हमें अनुभव होता है, सफर में पैसे खर्च करके भी आदमी कितनी तकलीफ उठाता है, व्यापार में पैसे फंसाकर, भारी जोखिम उठाकर और रात-दिन मेहनत करके भी कभी-कभी भारी हानि उठानी पड़ती है, आफिस में अपने अधिकारी या बॉस की जी-हजूरी करके और अपना कार्य पूरा करके भी कभी-कभी डाँट व अपमान की कड़वी छूट पीनी पड़ती है। विद्यार्थी को जी-तोड़ परिश्रम करने पर भी किसी कारण फेल या थर्ड डिवीजन मिलता है। इस प्रकार की सैकड़ों विपरीत स्थितियाँ, अनचाही मुसीबतें जीवन में निराशा, अनुत्साह और आकुलता का विष घोलती रहती हैं। इन स्थितियों में झुंझलाकर किसी को कोसना; सरकार या विभाग को गालियाँ देना, अथवा दूसरों को जिम्मेदार ठहराना-एक प्रकार की असहिष्णुता व आकुलता है, इससे हमारी पीड़ा कम नहीं होती, बल्कि मानसिक तनाव, संत्रास और अधिक बढ़ता है, तथा कभी-कभी तो समस्या अधिक उलझ जाती है। तितिक्षायोग इन विपरीत स्थितियों में भी 'हँसते-हँसते जीने की कला' सिखाता है। तन की पीड़ा को मन तक पहुँचने से रोक देता है। एक प्रकार से तितिक्षायोग मन को फायर प्रूफ बना देता है, ताकि अभाव व पीड़ाओं की आग से मन संतप्त न हो। आई हुई कठिनाई व बिगड़ी हुई परिस्थितियों में हम सहनशील रहें, उसे बरदाश्त करें और शान्त चित्त से उसके कारणों पर विचार कर उसका प्रतिकार करें-यह शक्ति तितिक्षायोग की साधना से प्राप्त होती है। अतः तितिक्षायोग की साधना गृहस्थ साधक के जीवन में भी अनिवार्य है, उपयोगी है। यह परिस्थिति से धैर्यपूर्वक निपटना सिखाता है। * 194 * अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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