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वन पड़ता था। तीनों व्यक्ति वन में होकर जा रहे थे कि सामने से अचानक चार डाकू आ गये। पहला व्यक्ति तो इतना डरपोक निकला कि डाकुओं को देखकर ही उल्टे पाँवों लौट गया। दूसरे व्यक्ति ने संघर्ष किया किन्तु उन डाकुओं से परास्त हो गया, उनके बन्धन में बंध गया। तीसरा व्यक्ति इतना साहसी था कि उस अकेले ने ही उन चारों डाकुओं को पराजित कर दिया
और अपने गन्तव्य स्थल-लक्ष्य पर पहुँच गया। __यह तीसरा व्यक्ति ही ग्रंथिभेद करके सम्यक्दर्शन की प्राप्ति एवं श्रेणी आरोहण करने में सक्षम होता है। ग्रन्थिभेद साधना के परिणाम
ग्रन्थिभेद साधना के परिणाम साधक के लिए बहुत हितकर, कल्याणकर और सुखद होते हैं।
सबसे बड़ा लाभ साधक को ग्रंथिभेद से यह होता है कि उसकी चेतना का प्रवाह सहज हो जाता है, ग्रंथि न रहने से उनके प्रवाह में किसी भी प्रकार की रुकावट नहीं आती, उसके व्यक्तित्व में दोहरापन नहीं रहता, उसका अन्तर और बाह्य एक समान रहता है। इसके परिणामस्वरूप उसकी सारी दुविधाएँ मिट जाती हैं, उसमें सरलता और ऋजुता आ जाती है तथा चित्त की भूमि विशुद्ध हो जाती है। विशुद्ध चित्तभूमि होने से वह धर्म का आचरण करता है, धर्म को धारण करता है, अपनी भावनाएँ विशुद्ध रखता है, अपने आत्म-परिणामों की प्रेक्षा करता है और श्रेणी आरोहण करके कैवल्य प्राप्त कर लेता है। कैवल्य की उपलब्धि के उपरान्त तो उसे मुक्ति प्राप्त हो ही जाती है।
इस प्रकार ग्रंथिभेदयोग साधना मुक्ति की सहज साधना है। योगमार्ग के अभ्यासियों के लिए आवश्यक साधना है।
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* 188 * अध्यात्म योग साधना *