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________________ (2) मतिजाड्य शुद्धि - कायोत्सर्ग में मन की प्रवृत्ति केन्द्रित हो जाती है, चित्त एकाग्र होता है, उससे बुद्धि की जड़ता समाप्त हो जाती है। मेधा में प्रखरता आती है। ( 3 ) सुख - दुःख तितिक्षा - कायोत्सर्ग में साधक को देह और आत्मा की पृथक्ता का पूर्ण विश्वास हो जाता है, अतः उसका देह के प्रति ममत्वभाव कम होने लगता है। इसलिए उसमें सुख - दुःख सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है। (4) अनुप्रेक्षा - कायोत्सर्ग में स्थित साधक अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास स्थिरतापूर्वक करता है। इससे मन केन्द्रित होता है । ( 5 ) ध्यान - कायोत्सर्ग में शुभध्यान का सहज ही अभ्यास हो जाता है।' यदि शरीरशास्त्र की दृष्टि से विचार किया जाये तो भी कायोत्सर्ग शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है । बात यह है कि मानसिक एवं शारीरिक तनाव के कारण ही अनेक शारीरिक तथा मानसिक व्याधियाँ समुत्पन्न होती हैं। क्योंकि तनाव के कारण शरीर में कुछ विशेष रासायनिक परिवर्तन हो जाते हैं। (1) स्नायुओं की शर्करा एसिड में परिवर्तित हो जाती है, परिणामतः स्नायुओं में शर्करा कम हो जाती है। इससे चक्कर आने लगते हैं। (2) लैक्टिक एसिड स्नायुओं में इकट्ठी हो जाती है। इससे पाचन क्रिया बिगड़ती है। (3) लैक्टिक एसिड बढ़ जाने से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है। (4) स्नायुतंत्र में थकान महसूस होने लगती है । (5) रक्त में प्राणवायु की मात्रा कम हो जाती है। इससे दुर्बलता या घुटन अनुभव होती है। कायोत्सर्ग में साधक जो अपने शरीर का शिथिलीकरण करता है और 1. (क) देहमइ जडसुद्धी सुहदुक्ख तितिक्खिया अणुप्पेहा । झायइ सुहं झाणं एगग्गो काउसगम्मि ।। - कायोत्सर्ग शतक, गाथा 13 (ख) मणसो एग्गत्तं जणयइ, देहस्स हणइ जडुत्तं । काउसग्गगुणा खलु सुहदुहमज्झत्थया चेव ।। - व्यवहारभाष्य पीठिका, गाथा 125 (ग) प्रयत्न विशेषतः परमलाघवसंभवात्। -वही वृत्ति * 172 अध्यात्म योग साधना :
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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