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________________ आवश्यक है। साधक को अपनी आत्मा को तप, संयम और नियम में रखना चाहिये। __शुद्धि के लिए शास्त्रों में भी विवेचन किया गया, वहाँ (1) द्रव्य-शुद्धि (2) क्षेत्र शुद्धि, (3) काल-शुद्धि तथा (4) भाव शुद्धि-शुद्धि के ये चार प्रकार बताये गये हैं। (1) द्रव्य-शद्धि से अभिप्राय आसन आदि की शुद्धि है। जिस आसन पर अवस्थित होकर साधक सामायिक की साधना करता है, उसका उसे भली-भाँति प्रमार्जन कर लेना आवश्यक है, उसके धर्मोपकरण भी शुद्ध, सादे और स्वच्छ हों, उसके वस्त्र आदि भी स्वच्छ और श्वेत होने अनिवार्य हैं। श्वेत रंग शांति, सद्भावना और सात्विकता का परिचायक है, इसके संयोग से साधक के मनोभावों में भी शुद्धता आती है। . अतः द्रव्यशुद्धि सामायिक साधना की पहली और प्राथमिक शुद्धि है। (2) क्षेत्र-शुद्धि-साधक को अपनी सामायिक साधना के लिए सर्वथा एकान्त, निरुपद्रव स्थान चुनना चाहिये। स्थान ऐसा हो, जहाँ डांस-मच्छर आदि की बाधा न हो, कोलाहल और भीड़ का शोर न हो, ध्यान में विघ्न पड़े; ऐसे कारण वहाँ न हों। ऐसा स्थान उपाश्रय, धर्मस्थानक, नगर और ग्राम के बाह्य भाग तथा वन में कहीं भी हो सकता है। ___(3) काल-शुद्धि-सामायिक साधना के लिए साधक को काल का ध्यान रखना चाहिये। समय ऐसा होना चाहिए जब कि ज्यादा कोलाहल न हो। ऐसा समय प्रातः और सन्ध्या का होता है। प्रातःकाल मनुष्य का तन-मन प्रफुल्लित रहता है, न तन में आलस्य रहता है और न मन में जड़ता। उस समय मन शांत रहता है, उसमें संकल्प-विकल्पों के तूफान नहीं उमड़ते। फिर भी साधक अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार यह निर्णय कर सकता है कि वह कब सामायिक की साधना करे, जिससे चित्त चंचल न हो और वह सरलता से शान्तिपूर्वक समत्व की साधना कर सके। 1. (क) जस्स सामाणिओ अप्पा संजमे नियमे तवे। तस्स सामायि होइ, इइ केवलि भासिय।। आवश्यकनियुक्ति, गाथा 798 (ख) अनुयोगद्वार 127, (ग) नियमसार, गाथा 127 * परिमार्जनयोग साधना (षडावश्यक) * 167*
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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