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________________ (4) भावशुद्धि-भावशुद्धि से अभिप्राय है-मन-वचन-काय की शुद्धि तथा एकाग्रता एवं निश्चलता। मन-वचन-काय-त्रियोग की अपेक्षा से भाव शुद्धि तीन प्रकार से की जाती है। (क) मनःशुद्धि-मन:शुद्धि का आशय है-मन में अशुभ विचारों का न आना। मन बड़ा चंचल है, इसकी शक्ति भी अत्यधिक है। गति भी आशातीत है। आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार ही विचारों की गति (मन का वेग) 22,65,120, मील प्रति सेकण्ड है; जब कि अन्य किसी भी भौतिक पदार्थ की गति इतनी तीव्र नहीं है। यह मन सदा ही संकल्प-विकल्पों और तर्क-वितर्कों के जाल में उलझा रहता है, तरह-तरह की उधेड़-बुन किया करता है, कभी निश्चल बैठता ही नहीं। इसकी गति को और संकल्प-विकल्पों के जाल को रोकना बहुत कठिन है। यहाँ साधक के लिए निर्देश है कि वह मन की शुद्धि करे, उसे मारने का प्रयास न करे। क्योंकि मन तो कभी मरता ही नहीं, उसका तो आत्मा में, आत्म-परिणामों में लय होता है, वह (भाव-मन) आत्मा की अथाह और अनंत सत्ता में विलीन हो जाता है। सामायिक साधक मनःशुद्धि द्वारा मन को आत्मभाव में लीन करता है, अशुभ-भावों की ओर जाते हुए मन को शुद्ध और शुभ भावों की ओर मोड़ता है, यही उसकी मनःशुद्धि है। (ख) वचन-शुद्धि-वचन के दो भेद हैं-(1) अन्तर्जल्प और (2) बहिर्जल्प। बहिर्जल्प तो तब होता है जब वचन अथवा ध्वनि प्राणी के शरीर के ध्वनियन्त्रों से टकराती हुई जिह्वा, कंठ, तालु, दन्त, मूर्धा आदि के संस्पर्श एवं संयोग से शब्द अथवा ध्वनि रूप में बाहर निकलती है। ऐसी ही ध्वनि मनुष्य को स्वयं अथवा दूसरों को सुनाई देती है। किन्तु अन्तर्जल्प सिर्फ अन्दर ही रह जाता है, ध्वनियन्त्रों का संयोग करते हुए बाहर नहीं निकलता। इसकी ध्वनि न साधक को स्वयं सुनाई देती है, न अन्य लोगों को। अन्तर्जल्प मनोविचारों के बाद की स्थिति, उनकी अपेक्षा कुछ स्थूल होती है। साधारण शब्दों में अन्तर्जल्प को सूक्ष्म वचनयोग और बहिर्जल्प को स्थूल वचनयोग कहा जा सकता है। स्थूल वचनयोग की शुद्धि तो सामायिक में साधक करता ही है, वह अप्रिय, कठोर, कर्कश शब्द नहीं बोलता; किन्तु वास्तविक रूप में उसकी वचन-शुद्धि तभी होती है जब वह अन्तर्जल्प अथवा सूक्ष्म वचनयोग की शुद्धि कर लेता है। * 168 * अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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