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________________ कार, स्कूटर, ट्रेन, रिक्शा, बैलगाड़ी आदि ) किसी भी प्रकार के वाहन का प्रयोग स्वयं नहीं करता और दूसरों से भी नहीं कराता । वाहनों का प्रयोग करने - कराने का त्याग वह इसलिये करता है कि वाहनों से स्थूल एवं सूक्ष्म प्राणियों की अधिक हिंसा होती है। वह सावधानीपूर्वक पूर्ण पदयात्री रहता है। इस प्रकार वह और भी गहराई से तथा सूक्ष्मदृष्टिपूर्वक अहिंसा यम की साधना करता है तथा अपना अधिकांश समय संवरयोग में व्यतीत करता है। इस प्रतिमा के साधक के जीवन में संवरयोग (निवृत्ति) प्रमुख हो जाता है। (10) उद्दिष्टभक्त - त्याग प्रतिमा ( संवर योग की साधना ) इस प्रतिमा में गृहस्थयोगी साधक हिंसा से और भी विरत हो जाता है, वह निरन्तर स्वाध्याय और ध्यान में लीन रहता है। वह अपने निमित्त बने आहार को भी नहीं खाता, इसका कारण यह है कि भोजन बनाने में जल, अग्नि, वायु, वनस्पति काय के जीवों की हिंसा तो होती ही है, और वह अपने लिए किंचित् भी हिंसा कराना नहीं चाहता। इस प्रकार वह सूक्ष्महिंसा का त्याग करने में भी प्रयत्नशील रहता है तथा अहिंसा यम की अधिक से अधिक साधना करता है।' वह अपने बालों का छुरे से मुण्डन कराता है। चोटी सिर्फ इसलिए रखता है कि वह गृहस्थ का चिन्ह है और अभी वह साधक गृहस्थ ही है, गृहत्यागी नहीं बना है। साथ ही वह वचनयोग का संवर भी करता है। भाषा का पूर्ण विवेक रखता है। कोई प्रश्न पूछे जाने पर यदि वह जानता है तो कहता है 'मैं जानता हूँ' और यदि नहीं जानता है तो कहता है - 'मैं नहीं जानता । ' इस प्रकार वह मन-वचन-काय - तीनों योगों को वश में करके संवर योग तथा ध्यान - स्वाध्याय आदि के द्वारा ध्यानयोग एवं तपोयोग की साधना में दत्तचित्त रहता है। (11) श्रमणभूत प्रतिमा (गृहस्थ - योगसाधना का अन्तिम सोपान ) प्रस्तुत प्रतिमा गृहस्थ साधक की योग-साधना का अन्तिम सोपान है। 1. आयारदसा, छठी दशा, सूत्र 26, पृष्ठ 62 * विशिष्ट योग- भूमिका प्रतिमा-योगसाधना * 147
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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