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________________ इस प्रतिमा में गृहस्थ साधक सभी प्रकार के सचित्त आहार - जल आदि सभी प्रकार के भोज्य पदार्थों का त्याग कर देता है।' इस प्रकार वह आहार सम्बन्धी संयमन और नियमन करके अपनी इच्छाओं का निरोध करता है तथा अहिंसा की साधना में आगे बढ़ता है। ( 8 ) आरम्भ त्याग प्रतिमा (अहिंसा यम की साधना ) आरम्भ शब्द जैन धर्म का एक पारिभाषिक शब्द है। इसका अभिप्राय है - हिंसात्मक क्रिया-कलाप । मन से किसी प्राणी को दुःख पहुँचाने अथवा हनन करने का विचार मानसिक आरम्भ है। जिससे किसी का हृदय तिलमिला उठे, पीड़ित हो जाये, . ऐसे वचन बोलना वाचिक आरम्भ है। शारीरिक क्रियाओं, लकड़ी, शस्त्र आदि से किसी प्राणी को पीड़ित करना, डराना, धमकाना आदि शारीरिक आरम्भ है। हिंसात्मक होने के कारण वह घर एवं व्यापार सम्बन्धी कार्य अथवा आरम्भ नहीं करता । इस प्रतिमा की साधना करने वाला साधक इन आरम्भों को स्वयं नहीं करता; किन्तु पुत्र आदि तथा सेवक वर्ग से आरम्भ कराने का त्यागी नहीं होता । 2. साधक स्वयं स्थूल प्राणियों की हिंसा न करके अहिंसा यम की साधना-आराधना करता है। ( 9 ) प्रेष्य परित्याग प्रतिमा (संवरयोग तथा सूक्ष्म अहिंसा यम की साधना ) प्रस्तुत प्रतिमा में साधक अहिंसा यम की और भी सूक्ष्म आराधना करता है। वह घर एवं व्यापार सम्बन्धी कार्य किसी अन्य ( पुत्र, सेवक आदि) से भी नहीं करवाता है। यहाँ तक कि वह वायुयान, जलयान, स्थलयान (मोटर, 1. 2. 3. आयारदसा, छठी दशा, सूत्र 23, पृष्ठ 60 (क) आयारदसा, छठी दशा, सूत्र 24, पृष्ठ 61 (ख) विंशतिका 10/14 (ग) आचार्य सकलकीर्ति ने इस आठवीं प्रतिमा में ही वाहनों का प्रयोग करने तथा कराने का त्याग माना है। - देखिए प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, श्लोक 107 आयारदसा, छठी दशा, सूत्र 25, पृष्ठ 61 * 146 अध्यात्म योग साधना :
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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