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________________ पाँच नियम मुख्य हैं-(1) स्नान नहीं करना (2) रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग अथवा सूर्य के प्रकाश में ही चारों प्रकार का आहार ग्रहण करना, (3) मुकुलीकृत रहना अर्थात् धोती को लांग नहीं लगाना, (4) दिन में पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना, तथा रात्रि में भी अब्रह्म-सेवन की मर्यादा करना और (5) एक रात्रि की प्रतिमा का भली-भाँति पालन करना।' जीव-रक्षा की भावना से प्रस्तुत प्रतिमाधारी गृहस्थ सचित्त जल का उपयोग बिल्कुल भी नहीं करता। इस प्रकार साधक, इस प्रतिमा द्वारा योग-साधना के मार्ग पर चलता हुआ, संसार से और भी विरक्त होता है। (6) ब्रह्मचर्य प्रतिमा (चेतना का ऊर्ध्वारोहण) ब्रह्मचर्य की साधना योग के लिए अति आवश्यक है; क्योंकि निर्वीर्य अथवा भोग द्वारा वीर्य को नाश कर देने वाला व्यक्ति योग की साधना में चमक नहीं ला सकता। वीर्य की शक्ति के द्वारा ही तो कुण्डलिनी शक्ति सुषुम्ना नाड़ी में होकर ऊर्ध्व गति करती है, चेतना का ऊर्ध्वारोहण होता है। योगी की साधना ऊर्जस्वी और तेजस्वी बनती है। गृहस्थयोगी इस प्रतिमा की साधना द्वारा अपनी चेतना अथवा जीवनी शक्ति का ऊवीकरण करके योग-साधना करता है। इस प्रतिमा में साधक मन-वचन-काया, इन तीनों योगों से पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है, यहाँ तक कि ऐसा हास्य-विनोद भी नहीं करता जिसके कारण ब्रह्मचर्य में दूषण लगने की भी सम्भावना हो। (7) सचित्तत्याग प्रतिमा (आहार-संयम) आहार का संयम योग का एक आवश्यक अंग है। आहार जितना ही अधिक निर्दोष (हिंसा आदि दोषों से रहित) और सात्विक होगा, साधक का मन उतना ही अधिक आत्म-साधना में रमण कर सकेगा। 1. 2. आयारदसा, छठी दशा, सूत्र 21, पृष्ठ 58 (क) आयारदसा, छठी दशा, सूत्र 22, पृष्ठ 59-60 (ख) विंशतिका, 10/9-11 * विशिष्ट योग-भूमिका : प्रतिमा-योगसाधना - 145 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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