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________________ है-जो विरतियोग की साधना है और प्रतिक्रमण में वह अपने दोषों की आलोचना करके उनको पुनः न लगने देने का दृढ़ निश्चय करता है। __ इस प्रकार श्रावक की सामायिक-प्रतिमा पूर्ण रूप से योग के अन्तर्गत आती है, क्योंकि सामायिक साधना ही आत्मसाधना है और आत्मसाधना ही योग का लक्ष्य है, आदि है और अन्त है। यही कारण है कि सामायिक प्रतिमा का महत्त्व गृहस्थयोगी श्रावक के जीवन में अत्यधिक है। इस प्रतिमा का स्वरूप और लक्षण तथा माहात्म्य अनेक ग्रंथों में बताया गया है। (4) पौषध प्रतिमा (अहोरात्रि की आत्म-साधना) जब गृहस्थयोगी में विरक्ति भाव और आत्म-साधना की रुचि विशेष प्रबल हो जाती है तो वह दो घड़ी समय से बढ़ाकर एक रात्रि-दिन (24 घंटे) तक आत्म-साधना और धर्मध्यान करने लगता है। लेकिन चूँकि गृहस्थ को पारिवारिक और सामाजिक दायित्व भी निभाने पड़ते हैं, इसलिए वह अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या-इन छह पर्व दिनों में अवश्य धर्मस्थान में जाकर, अन्न-पान आदि सभी प्रकार के आहार का त्याग करके तथा समस्त पारिवारिक, सामाजिक गतिविधियों को छोड़, गुरु के सान्निध्य में, यदि वे स्थानक में उपस्थित हों, 24 घण्टे तक धर्म-जागरणा करता है, आत्म-चिन्तन-मनन, स्वाध्याय, धर्मध्यान आदि में समय व्यतीत करता है, यह पौषध प्रतिमा है। __इस प्रतिमा का धारी गृहस्थयोगी और भी योगनिष्ठ हो जाता है। (5) नियम प्रतिमा (विविध नियमों की साधना) इस प्रतिमा को धारण करके गृहस्थयोगी विभिन्न प्रकार के नियमों को ग्रहण करता है, उनकी परिपालना सम्यक् रूप से करता है। इस प्रतिमा के 1. 2. (क) आयारदसा, छठी दशा, सूत्र 19 (ख) रत्नकरंड श्रावकाचार, 139 (क) आयारदसा, छठी दशा, सूत्र 20 (ख) रत्नकरंड श्रावकाचार 140 (ग) श्रावकाचार संग्रह, भाग 4, प्रस्तावना, पृ. 83 (घ) धर्मरत्नाकर, श्लोक 32-33, पृ. 336 *144 * अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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