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________________ इस प्रतिमा को धारण करके वह घर से निकल जाता है और धर्मस्थानक में अथवा सन्त-श्रमणों के साथ रहता है। __ वह भिक्षा द्वारा प्राप्त भोजन करता है। केश-लोच करता है और यदि शक्ति न हो तो छुरे (उस्तरे से) मुण्डन भी करा सकता है। उसका वेष और आचार श्रमण जैसा होता है, इसीलिए इस प्रतिमा का नाम श्रमणभूत प्रतिमा है। इस प्रतिमा के बाद वह श्रमण बन जाता है। ___ इस प्रतिमा को धारण करने वाला साधक यम-नियमों का पालन करता हुआ स्वाध्याय, ध्यान, समाधि आदि योग-क्रिया-प्रक्रियाओं की साधना करता है। उसका जीवन पूर्ण योगी का जीवन होता है। प्रतिमाओं की विशेष बातें गृहस्थ प्रतिमाओं की साधना क्रमशः होती है। साधक पहली, दूसरी, तीसरी तथा इसी प्रकार क्रमशः ग्यारहवीं प्रतिमा तक शनैः-शनैः उन्नति करता है। ये गृहस्थ साधक की साधना की भूमिकाएँ अथवा सोपान हैं। जिस प्रकार सीढ़ी चढ़ने के लिए पहली सीढ़ी पर पैर रखा जाता है, फिर दूसरी पर; उसी प्रकार इन प्रतिमाओं की भी साधना की जाती है। साधक पहली प्रतिमा की साधना में परिपक्व होने के बाद ही दूसरी प्रतिमा धारण करता है। उत्तरोत्तर प्रतिमाओं की साधना करते समय वह पिछली प्रतिमाओं में किये गये अभ्यास को छोड़ नहीं देता, वरन् सुदृढ़तापूर्वक करता रहता है। इन प्रतिमाओं में से प्रथम प्रतिमा का कालमान या साधना काल 1 मास का, दूसरी प्रतिमा का- 2 मास का, तीसरी प्रतिमा का 3 मास का, चौथी प्रतिमा का 4 मास का, पाँचवीं प्रतिमा का 5 मास का, छठी प्रतिमा का 6 मास का, सातवीं प्रतिमा का 7 मास का, आठवी प्रतिमा का 8 मास का, नवी प्रतिमा का 9 मास का, दसवीं प्रतिमा का 10 मास का, और ग्यारहवीं प्रतिमा का 11 मास का है। प्रतिमाओं की साधना करते हुए गृहस्थ साधक योगनिष्ठ होता जाता है और अन्तिम प्रतिमा में तो वह योगी ही बन जाता है। इसीलिए प्रतिमाओं की साधना को योग साधना तथा प्रतिमायोग माना जाता है। 1. आयारदसा, छठी दशा, सूत्र 27, पृष्ठ 63 *148 अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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