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प्रस्तोता की कलम से
लगभग अट्ठाईस वर्ष पहले आराध्य गुरुदेव पूज्य प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज की योग विषय पर अमर कृति - " जैन योग सिद्धांत और साधना" का प्रकाशन हुआ था। उसी कृति का यह पुनर्संस्करण है नवीन नाम और संक्षिप्त नामावली के साथ। इस कृति का नाम 'अध्यात्म योग साधना' रखा गया है। इस कृति में भारतीय एवं भारतीयेतर योग विधियों का यथाविधि अंकन हुआ है। आराध्य गुरुदेव का यह विशिष्ट अतिशय है कि वे बहुत थोड़े में बहुत कुछ बयां कर देते हैं। इस कृति में भी यही हुआ है। आराध्य गुरुदेव ने योग जैसे विराट विशद विषय को थोड़े से शब्दों में अर्थात् स्वयंभूरमण को अंजुरियों में समेट लिया है।
आराध्य गुरुदेव अनन्त आयामी व्यक्तित्व के स्वामी हैं । षडदशकीय साधना काल में गुरुदेव ने अपनी जादुई धर्म देशनाओं से जिनशासन की जो प्रभावना की है वह अद्भुत और विलक्षण है। प्रवचन सभा के मध्य मंच पर आसीन होकर गुरुदेव जब अपनी पीयूष पावनी वाग्मिता को प्रवाहित करते हैं तो समय ठिठक कर ठहर जाता है। अग-जग की सुध विस्मृत कर श्रोता भक्ति और भाव के अतल में गोता लगाने लगते हैं। गुरुदेव की प्रबुद्ध प्रेरणाओं से अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थानों की स्थापना हुई है। ये संस्थाएँ सेवा, शिक्षा, चिकित्सा और धार्मिक उपक्रमों के रूप में जन सेवा में समर्पित हैं।
वाग्मिता के समान ही साहित्य साधना के क्षेत्र में भी आराध्य गुरुदेव ने नए इतिहास का निर्माण किया है। आप द्वारा सृजित और सम्पादित कई कालजयी ग्रन्थ धर्म और दर्शन के इन्साइक्लोपीडिया का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। इस क्षेत्र में हिन्दी - इंग्लिश अनुवाद सहित सचित्र आगम बत्तीसी का प्रकाशन आपके संकल्प का एक ऐसा प्रकल्प है जो कल्पों तक आपकी यशः पताका को दिग्दिगन्तों में फहराता रहेगा।
अमर गुरुदेव के अमर अवदान अनन्त हैं जिन्हें कलम की परिधि में समेट पाना कदापि संभव नहीं है। अगणित सौभाग्यशालियों की श्रृंखला में मुझे भी वह स्थान प्राप्त हुआ है जिस पर अमर गुरुदेव का कृपा वर्षण हुआ है। यह मेरा परम सौभाग्य है, मेरी अनन्त पुण्यराशि का अमर सुफल है।
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