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________________ ( 4 ) आदान निक्षेपणा समिति भावना - वस्त्र, पात्र, शास्त्र, आहार, पानी आदि किसी वस्तु को उठाते, रखते या छोड़ते समय प्रमाणोपेत दृष्टि से प्रतिलेखना - प्रमार्जन - पूर्वक ग्रहण करना, रखना, छोड़ना । (5) आलोकित पान - भोजन भावना - भोजन-पान की वस्तु को भली-भाँति देखकर लेना तथा सदैव देख-भालकर, स्वाध्याय आदि करके, गुरु- आज्ञा प्राप्त करके, संयमवृद्धि के लिए शांत एवं समत्व भाव से स्तोक मात्र आहार ग्रहण करना ।' (2) सत्य महाव्रत : योग का आधार इसका आगमोक्त नाम 'सर्वमृषावादविरमण' है। सत्य, योग का प्रकाशदीप है। श्रमणयोगी की सम्पूर्ण चर्या, साधना और उपासना यहाँ तक कि उसके जीवन के अणु - अणु में प्रकाश एवं तेजस्विता सत्य ही देता है। श्रमणयोगी हृदय में सत्य का दीपक सदैव प्रज्वलित रखता है। श्रमणयोगी बिल्कुल भी असत्याचरण नहीं करता । सत्य तथ्य को प्रगट करता है और सदा हित- मित-प्रिय वचन बोलता है। इस प्रकार वह वचन योग की साधना करता है तथा अष्टांगयोग के प्रथम अंग यम के द्वितीय भेद सत्य की त्रिकरण - त्रियोग से साधना करता है और सत्य में ही स्थिर रहता है। सत्य महाव्रत में स्थिर रहने की पाँच भावनाएँ 2 हैं (1) अनुवीचि भाषण - 1 - निर्दोष, मधुर और हितकर वचन बोलना, कटु सत्य न बोलना तथा शीघ्रता और चपलता से बिना विचार किये न बोलना । . ( 2 ) क्रोधवश भाषण वर्जन-क्रोध के आवेश में न बोलना। क्योंकि क्रोध की तीव्रता में मुँह से कठोर वचन निकल जाते हैं, जिससे सुनने वाले का दिल दुःखी होता है। (3) लोभवश भाषण वर्जन- लोभ के वशीभूत होकर भी झूठ बोला जाता है, अतः लोभ के उदय में साधु को भाषण करना - बोलना नहीं चाहिए। " ( 4 ) भयवश भाषण वर्जन- मिथ्याभाषण का भय भी एक प्रमुख कारण है, अतः साधु के सामने जब भय का कारण उपस्थित हो तब उसे भाषण का त्याग करके मौन धारण कर लेना चाहिये। आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध अध्ययन 15, सूत्र 778 वही, सूत्र 780-81-82 * 132 अध्यात्म योग साधना : 1. 2.
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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