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द्वितीय संस्करण
वर्तमान युग के मानव के लिए स्वस्थ रहना सबसे बड़ी चुनौती है। पर्यावरणीय विषमताओं और जटिल जीवन-शैली में व्यक्ति के लिए स्वयं को स्वस्थ रख पाना सरल कार्य नहीं है। विकास की अंधी दौड़ में मानव ने प्रकृति का इस निर्ममता से दोहन किया है कि प्रकृति का स्वरूप विकृत हो गया है। नित नूतन आधुनिक आविष्कारों ने जहाँ मानव को कई सुविधाएँ दी हैं वहीं दिया है विकिरणों से भरा हुआ एक ऐसा वायुमण्डल जहाँ मानव को शुद्ध वायु में सांस लेना भी कठिन हो गया है। आए दिन नई-नई बीमारियाँ मानवीय स्वास्थ्य को आक्रांत कर रही हैं। चिकित्सा के पुराने साधन कुन्द हो गए हैं। मेडिशन के क्षेत्र में होने वाले नए-नए शोध भी बहुत समय तक कारगर सिद्ध नहीं हो पाते हैं।
फिर मानव स्वस्थ कैसे रहे? उक्त विषम वातावरण में योग एक स्वर्णिम किरण है जो मानव को स्वास्थ्य का सुदृढ़ संबल प्रदान करती है। यह सच है कि योग सहस्रों वर्षों से भारतीय आध्यात्मिक परम्पराओं का प्रिय विषय रहा है। परन्तु आधुनिक युग में योग का जो बहुप्रचार और बहुप्रचलन समग्र विश्व का ध्यान आकर्षित कर रहा है उसके मूल में व्यक्ति की स्वास्थ्य की चाह ही मूल हेतु है। भारतीय ऋषियों-मुनियों के समक्ष शारीरिक स्वास्थ्य का प्रश्न गौण और मानसिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य का प्रश्न प्रमुख था। उन्होंने योग विद्या द्वारा आत्म-शक्तियों को जागृत कर शान्ति और सरलता के ऐसे रहस्यों को अनावृत्त किया था कि उनके लिए कुछ भी अशक्य शेष नहीं रहा था।
___ यदि सम्यक् विधि से योग को समझा जाए और सम्यक् रूप से उसकी आराधना की जाए तो मानव के लिए कोई भी ऐसा शिखर नहीं है जिसे वह स्पर्श न कर पाए। आध्यात्मिक जगत् में सिद्ध शिला सर्वोच्च शिखर है, योग द्वारा उस सर्वोच्च शिखर का स्पर्श भी सम्भव है। तीर्थंकरों की साधना विधि को यदि हम ठीक से अध्ययन कर पाएँ, तो यह समझने में किचित् भी असमंजस न होगा कि उनकी पूरी की पूरी साधना योग से अनुप्राणित थी। पुनः कहना चाहूँगा कि योगी के लिए कुछ भी अलभ्य नहीं है।
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