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________________ अर्थान्तर के साथ जैन आगम और उनके उत्तरवर्ती ग्रन्थों में विद्यमान हैं। इस प्रकार 'योगविद्या' पर किसी एक सम्प्रदाय की मुद्रा अंकित करने का दुस्साहस व्यर्थ तथा असंगत है। उस युग में इस कृति का व्यापक प्रसार हुआ और योग सम्बन्धी धारणाओं में समन्वय सेतु तैयार हुआ। आज 50 वर्ष के अन्तराल में परिस्थितियाँ काफी बदल गईं। संप्रदायगत अभिनिवेश कम हुए हैं, लोगों में समन्वय व व्यापक दृष्टि से सोचने की आदत बनी है। फिर नई वैज्ञानिक खोजों ने भी योग की अनेक साधनाओं को विज्ञान-सम्मत सिद्ध कर दिया है, और शरीर तथा मन की, आत्मा की असीम शक्ति के विषय में अनेक प्रयोग करके उसे प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया है। . प्रस्तुत पुस्तक वास्तव में आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज की 'जैनागमों में अष्टांग योग' पुस्तक का ही परिष्कृत स्वरूप है। हालांकि उसमें बहुत संक्षेप में योगविद्या सम्बन्धी सूत्र दिये हैं, मैंने उनको विस्तार के साथ, सरल और व्यापक दृष्टि से प्रस्तुत कर दिया है। साथ ही इस अर्द्ध शताब्दी में हुई ज्ञान-विज्ञान की प्रगति को ध्यान में रखकर योग सम्बन्धी नये प्रयोग, विवेचन और अनुसन्धान को भी इस पुस्तक में स्थान दिया है। फिर भी इसका मूल आधार वही कृति है, और मेरा विचार नई कृति तैयार न करके उसे ही नया स्वरूप प्रदान करने का था, ताकि पाठक सरलता के साथ योगविद्या को समझ सकें, ग्रहण कर सकें और जीवन में आनन्द तथा शान्ति की प्राप्ति कर सकें। - शरीरविज्ञान, मनोविज्ञान, परा मनोविज्ञान तथा विज्ञान की अन्य शाखाओं पर हुए नये-नये प्रयोगों की चर्चा से मैंने इस पुस्तक को आम आदमी के लिए उपयोगी स्वरूप प्रदान करने की चेष्टा की है, मैं कितना सफल हुआ हूँ यह पाठक बतायेंगे। ___मेरे इस प्रयास के प्रेरणास्रोत तो उपप्रवर्तक नवयुग सुधारक मेरे श्रद्धेय गुरुदेव श्री पद्मचन्द्र जी महाराज ही हैं। उनकी प्रेरणा से ही मैं इस क्षेत्र में कुछ कर सका हूँ। जो कुछ हूँ, वह उन्हीं का उपकार मानता हूँ। साथ ही सेवाभावी श्री सुव्रत मुनि जी, श्री सुयोग्य मुनि जी एवं श्री पंकज मुनि जी की सेवा और साहचर्य को भी स्मरण करता हूँ जिनके कारण मैं आत्म-समाधि का अनुभव कर रहा हूँ। मेरे प्रस्तुत कार्य में प्रसिद्ध विद्वान श्रीचन्द जी सुराना एवं. डॉ. बृजमोहनजी जैन सहयोगी रहे हैं अतः मैं उनके सहयोग को आत्मीय रूप प्रदान करता हुआ औपचारिकता से दूर रहकर कृतज्ञ भाव से लेता हूँ। मुझे विश्वास है परम श्रद्धेय आचार्य सम्राट की जन्म शताब्दी वर्ष के प्रसंग पर उनकी यह कृति हमारी श्रद्धा-भक्ति का प्रतीक भी होगी और पाठकों को आचार्य श्री की स्मृति कराती रहेगी। जैन स्थानक -अमर मुनि अशोक विहार, देहली-52 * 11*
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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