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________________ वस्तुओं में मोह-ममता कम होती है, आसक्ति छूटती है। इससे धर्म- मार्ग निर्बाध रूप से चलता है। श्रमण- श्रमणी की अनिवार्य आवश्यकताएँ सद्गृहस्थ द्वारा पूरी हो जाने से वे अपनी संयम यात्रा निश्चिन्ततापूर्वक पूरी करते हैं। इस व्रत के पाँच अतिचार हैं - (1) सचित्त निक्षेप - अचित्त आहार को सचित्त वस्तु में डालकर रखना ( 2 ) सचित्त पिधान-सचित्त वस्तु से ढककर रखना। (3) कालातिक्रम-समय पर दान न देना, असमय के लिए कहना । (4) परव्यपदेश-दान न देने की भावना से अपनी वस्तु को पराई कह देना । (5) मत्सरता - ईर्ष्या व अहंकार की भावना से दान देना । ये श्रावक के बारह व्रत हैं। अन्तिम समय की साधना : संलेखना गृहस्थ साधक जीवनभर व्रतों की आराधना - साधना करता है; किन्तु उसकी साधना कितनी सफल हुई है, उसके अन्तर्मन में कितना समताभाव आया है, इसकी कसौटी यह अन्तिम साधना - सल्लेखना है। जिस प्रकार विद्यार्थी के वर्ष भर के अध्ययन की कसौटी उसकी वार्षिक परीक्षा है, वैसी ही स्थिति साधक के जीवन में संल्लेखना की है। संल्लेखना मृत्यु का साहसपूर्वक एक मित्र की भाँति स्वागत करने के समान है। जब गृहस्थ साधक को यह विश्वास हो जाता है कि उसका अन्तिम समय निकट आ गया है, उसे परलोक के लिए प्रयाण करना है तो वह काय और कषाय को कम करता है। काय को कृष करने का अर्थ है-काया से. ममत्वभाव को दूर करना । इनके लिए वह आहार आदि का शनैः-शनैः त्याग करता जाता है और कषाय को वह अपने हृदयस्थित समताभाव द्वारा कम करता रहता है। इस प्रकार वह अपने आपको परलोक-गमन के लिए तैयार कर लेता है। इस साधना से शुभ परिणामों में उसकी मृत्यु होती है और वह उच्चगति पाता है। इस व्रत के पाँच अतिचार हैं - ( 1 ) इहलोकाशंसा - प्रयोग - इस लोक में राजा, सेठ आदि बनकर ( मरने के बाद अगले जन्म में) सुख भोगूँ। (2) परलोकाशंसा प्रयोग - मृत्यु के उपरान्त आगामी भव में स्वर्ग के सुख भोगने की इच्छा। ( 3 ) जीविताशंसा प्रयोग - यश-कीर्ति आदि की प्राप्ति के लोभ में अधिक समय तक जीवित रहने की इच्छा। (4) मरणाशंसा प्रयोग - अनशन आदि अथवा शारीरिक कष्टों से घबड़ाकर मृत्यु की इच्छा करना। (5) कामभोगाशंसा प्रयोग-आगामी जन्म में कामभोग (सांसारिक सुख) पाने की तीव्र अभिलाषा । * योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शील ( 1 ) * 125 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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