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________________ पौषध व्रत में गृहस्थ साधक नियमित काल मर्यादा तक द्रव्य और भाव से आत्म-साधना, स्वाध्याय, ध्यान आदि धार्मिक क्रियाएँ करता है। इससे उसके द्रव्य - रोग (शरीर सम्बन्धी रोग) तथा भाव - रोगों (कर्मों) का नाश होता है। साधक की आत्मा निर्मल होती है, आत्म-शक्ति बढ़ती है, ध्यान (धर्मध्यान) की योग्यता आती है और परीषह • ( अकस्मात् आने वाले शारीरिक एवं मानसिक कष्ट) सहने की क्षमता बढ़ती है। इस व्रत के पाँच अतिचार हैं - (1) अप्रत्यवेक्षित दुष्प्रत्यवेक्षित शय्या संस्तारक - बैठने के स्थान को भली-भाँति न देखना । (2) अप्रत्यवेक्षित दुष्प्रत्यवेक्षित उच्चार - प्रस्स्रवण भूमि - मल-मूत्र त्याग करने की भूमि को भली-भाँति न देखना। (3) अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित शय्या - संस्तारक - बैठने के स्थान की भली-भाँति प्रमार्जना (सफाई स्वच्छता) न करना । ( 4 ) अप्रमार्जित दुष्प्रमार्जित उच्चर - प्रस्रवण भूमि - मल-मूत्र त्याग करने के स्थान की भली-भाँति प्रमार्जना न करना। ( 5 ) सम्यक् अननुपालनता - पौषधोपवास का भली-भाँति पालन न करना, आत्मध्यान, स्वाध्याय आदि के बजाय सांसारिक बातों का चिन्तन करना, संकल्प - विकल्प और राग-द्वेष करना । (4) अतिथि संविभाग व्रत नैतिकतापूर्ण तरीकों से उपार्जित धन से उपलब्ध सामग्री में से अतिथि के लिए समुचित विभाग करना अतिथि संविभाग है। सद्गृहस्थ का यह बारहवाँ और अन्तिम व्रत है। अतिथि वह होता है, जिसके आने की कोई निश्चित तिथि न हो। ऐसे अतिथि उत्कृष्ट तो निर्ग्रन्थ श्रमण - साध्वी होते हैं और मध्यम व्रतधारी तथा सम्यक्त्वी श्रावक होते हैं। इनके अतिरिक्त अन्य दीन-हीन- अपंग अभावग्रस्त व्यक्ति भी होते हैं, जिनकी आवश्यकतापूर्ति भी सद्गृहस्थ अपना सहयोग देकर करता है। निर्ग्रन्थ साधु-साध्वियों को वह भक्तिभावपूर्वक औषध, पथ्य, आहार-वस्त्र आदि का दान देता है और श्रावक-श्राविकाओं का स्वागत-सत्कार वह साधर्मिक बन्धु मानकर करता है तथा उनकी आवश्यकतानुसार अपनी शक्ति सामर्थ्य के मुताबिक सहयोग देता है। इनके अतिरिक्त वह सभी प्राणियों को अनुकम्पा भाव से दान देता है । इस प्रकार सद्गृहस्थ दान की गंगा बहाता है। सामाजिक दृष्टि से तो यह व्रत महत्त्वपूर्ण है ही; किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से भी इसका महत्त्व कम नहीं है; क्योंकि इसके द्वारा मनुष्य में त्यागवृत्ति आती है, उसकी धन-साधन-सामग्री आदि अपने अधिकार की * 124 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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