________________
व्यवसाय, ( 3 ) शकट कर्म-अनेक प्रकार के गाड़ी, गाड़े, मोटर, ट्रक, रेलवे के इन्जन, डिब्बे, स्कूटर आदि वाहन बनाकर बेचना (4) भाटक कर्म - पशु तथा वाहन आदि किराये पर देना तथा बड़े-बड़े मकान आदि बनवाकर किराये पर देना, ( 5 ) स्फोटकर्म - सुरंग आदि का निर्माण करने का व्यवसाय, ( 6 ) दन्तवाणिज्य - हाथी दाँत, पशुओं के नख, रोस, सींग आदि का व्यापार, (7) लाक्षा वाणिज्य - लाख का व्यापार ( लाख अनेक त्रस जीवों की उत्पत्ति का कारण है, अतः इस व्यवसाय में अनन्त त्रस जीवों का घात होता है ), (8) रस वाणिज्य-मदिरा, सिरका आदि नशीली वस्तुएँ बनाना और बेचना, (9) विष वाणिज्य - विष, विषैली वस्तुएँ, शस्त्रास्त्र का निर्माण और विक्रय, (10) केश वाणिज्य -बाल व बाल वाले प्राणियों का व्यापार, ( 11 ) यन्त्र - पीड़न कर्म-बड़े-बड़े यन्त्रों - मशीनों को चलाने का धन्धा, ( 12 ) निर्लाच्छन कर्म-प्राणियों के अवयवों को छेदने और काटने का कार्य, (13) दावाग्निदापन कर्म - वनों में आग लगाने का धन्धा, ( 14 ) सरोह्रदतड़ागशोषणता कर्म - सरोवर, झील, तालाब आदि को सुखाने का कार्य, ( 15 ) असतीजनपोषणता कर्म - कुलटा स्त्रियों-पुरुषों का पोषण, हिंसक प्राणियों (बिल्ली, कुत्ता आदि ) का पालन और समाज-विरोधी तत्त्वों को संरक्षण देना आदि कार्य ।
"
इनसे मिलते-जुलते अन्य ऐसे व्यवसाय जिनमें महारम्भ - महापरिग्रह होता है, उन्हें भी सुश्रावक नहीं करता।
इस व्रत के पाँच अतिचार हैं - ( 1 ) सचित्ताहार - सचित्त् वस्तुओं की मर्यादा का उल्लंघन करना, (2) सचित्त प्रतिबद्धाहार - जिस सचित्त वस्तु का त्याग कर रखा है, उससे स्पर्श की हुई अन्य सचित्त वस्तु का आहार, (3) अपक्वाहार - बिना पके फल आदि, कच्चे शाक इत्यादि खा लेना, ( 4 ) दुष्पक्वाहार - जो वस्तु आधी पकी हो अथवा अधिक पक गई हो उसको खा लेना, ( 5 ) तुच्छौषधिभक्षण - जिन वस्तुओं में खाने का अंश कम हो और फैंकने का अधिक, उन वस्तुओं का आहार करना ।
(3) अनर्थदण्डविरमण व्रत
श्रावक की अपेक्षा से पाप कर्म के दो भेद किये गये हैं- (1) अर्थदण्ड और (2) अनर्थदण्ड । अर्थदण्ड तो प्रयोजनवश किया जाता है। स्वयं के अथवा परिवार के पालन-पोषण के लिए जो सावद्य प्रवृत्तियाँ (पाप प्रवृत्तियाँ) की जाती हैं, वे अर्थदण्ड हैं। किन्तु इनके अतिरिक्त ऐसी पाप-प्रवृत्तियाँ जिनसे लाभ तो कुछ नहीं होता और व्यर्थ का पाप बँधता है,
* 120 अध्यात्म योग साधना