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________________ उन्हें अनर्थदण्ड कहते हैं। इसमें श्रावक उन बेकार की पाप - प्रवृत्तियों का त्याग करता है। अनर्थदण्ड - निष्प्रयोजन हिंसा अथवा पाप के चार रूप हैं - (1) अपध्यानाचरित - चिन्ता और क्रूर : विचारों से होने वाली हिंसा । चिन्ता आर्तध्यान है और क्रूर विचार रौद्रध्यान । इन विचारों से व्यर्थ की हिंसा होती है। (2) प्रमादाचरित - शुभ कार्यों में आलस्य करना, असावधानीपूर्वक विभिन्न प्रकार की प्रवृत्ति करना और अशुभ कार्यों को करना । ( 3 ) हिंस्त्रप्रदान- ऐसे उपकरण किसी को देना जिन से हिंसा की जा सके। (4) पापकर्मोपदेश - हिंसा, झूठ, चोरी आदि पापों का लोगों को उपदेश देना, नये-नये उपाय सुझाना, प्रेरणा देना । अनर्थदण्डविरमण व्रत में साधक इन चारों प्रकार के पाप कर्मों का त्याग कर देता है। " अनर्थदण्डविरमण व्रत के पाँच अतिचार हैं - ( 1 ) कन्दर्प - विकार बढ़ाने वाले वचन बोलना, सुनना या वैसी चेष्टाएँ करना । ( 2 ) कौत्कुच्य - भांडों के समान हाथ-पैर फैंकना, नाक- मुँह - आँख आदि मटकाना, विकृत चेष्टाएँ करना। (3) मौखर्य-वाचालता बढ़ा-चढ़ाकर बातें करना, अपनी शेखी बघारना। (4) संयुक्ताधिकरण - बिना आवश्यकता के ही हिंसक हथियारों का संग्रह करना, बन्दूक और कारतूस तथा तीर और कमान आदि को संयुक्त करके रखना। (5) उपभोग - परिभोगातिरेक - उपभोग - परिभोग की वस्तुओं और सामग्री का आवश्यकता से अधिक संग्रह करना । शिक्षाव्रत शिक्षा का अभिप्राय अभ्यास है। जिस प्रकार विद्या का बार-बार - अभ्यास किया जाता है, उसी प्रकार जिन व्रतों का पुनः पुनः अभ्यास किया जाता है वे शिक्षाव्रत कहलाते हैं। शिक्षाव्रतों की विशेषता यह है कि वे बार-बार ग्रहण किये जाते हैं और पुनः-पुनः उनका अभ्यास किया जाता है। इनकी काल मर्यादा जीवन भर की नहीं होती। शिक्षाव्रत चार हैं। (1) सामायिक व्रत सामायिक शब्द 'सम + आय + इक' इन तीन शब्दों के योग से बना है। 'सम' का अर्थ समता है और 'आय' का अर्थ लाभ है। जिस क्रियाविशेष * योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शील (1) *121*
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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